रमेश शर्मा

Back Pain से छुटकारा पाने के लिए Nutritionist ने बताए कारगर उपाय, बस करने होंगे ये काम

How To Get Rid Of Back Pain: ये 5 नुस्खे न सिर्फ दर्द कम कर सकते हैं बल्कि भविष्य में होने वाले कमर दर्द की संभावना को भी दूर करता है.

Back Pain से छुटकारा पाने के लिए Nutritionist ने बताए कारगर उपाय, बस करने होंगे ये काम

Back Pain: स्ट्रेचिंग पीठ दर्द को कम करने और रोकने में मदद कर सकता है.

Back Pain: पीठ दर्द लोगों के जीवन में एक आम घटना है. यह भी सबसे प्रचलित मेडिकल कंडिशन में से एक है. जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, पीठ दर्द के आपको प्रभावित करने की संभावना अधिक होती है. न्यूट्रिशनिस्ट लवनीत बत्रा ने अपने हैंडल @Nutrition.By.Lovneet के जरिए अपनी हालिया इंस्टाग्राम स्टोरी में से एक में 5 टिप्स शेयर किए हैं जो पीठ दर्द को रोकने में मदद कर सकते हैं.

पीठ दर्द को रोकने के लिए 5 असरदार टिप्स | 5 Effective Tips To Prevent Back Pain

1. "अक्सर स्ट्रेच"

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पोषण विशेषज्ञ लवनीत बत्रा बताती हैं, "स्ट्रेच से उन मांसपेशियों में सर्कुलेशन में सुधार होता है और पीठ दर्द और क्षति का खतरा कम होता है." अगर आपकी पीठ में दर्द होता है, तो आप मान सकते हैं कि आराम करना और व्यायाम सीमित करना राहत पाने का सबसे अच्छा तरीका है. एक या दो दिन आराम करना फायदेमंद हो सकता है, लेकिन इससे अधिक दर्द को बढ़ा सकता है. नियमित व्यायाम मांसपेशियों के तनाव और सूजन को कम कर सकता है.

2. "अपनी मुद्रा में सुधार करें"

"खराब मुद्रा आपकी रीढ़ पर अनावश्यक दबाव डाल सकती है." पोषण विशेषज्ञ बत्रा बताती हैं कि एक दीवार के खिलाफ अपनी एड़ी के साथ खड़े होने से आपको अपने पोश्चर की जांच करने में मदद मिलेगी. जब आप खड़े हों तो आपका सिर, कंधे और पीठ सभी दीवार को छूना चाहिए. आपको एक हाथ से पीठ के पीछे पहुंचने में सक्षम होना चाहिए. अगर आपका आसन बदलता है, तो इसे तुरंत एडजस्ट करें.

3. "अपने कैल्शियम और विटामिन डी का सेवन बढ़ाएं"

सूजन, पीठ दर्द का एक कारण कई पोषक तत्वों की कमी है. इसके साथ ही कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर फूड्स हमारी हड्डियों को सीधे तौर पर मजबूत करते हैं.

4. "धूम्रपान न करें"

"निकोटीन रीढ़ की डिस्क में ब्लड फ्लो को रिस्ट्रिक्ट करता है." इसके साथ ही धूम्रपान करने वालों को विशेष रूप से पीठ दर्द होने का खतरा होता है क्योंकि धूम्रपान रीढ़ की हड्डी की डिस्क में पोषक तत्वों को ले जाने की क्षमता को कम कर देता है.

5. "हेल्दी वेट बनाए रखें"

"बहुत अधिक वजन आपकी पीठ पर तनाव डाल सकता है." अधिक वजन होना, विशेष रूप से मध्य भाग के आसपास, आपके गुरुत्वाकर्षण के केंद्र को बदलकर और आपकी पीठ के निचले हिस्से पर दबाव डालकर पीठ भविष्य बतानेवाला विश्लेषक की परेशानी को बढ़ा सकता है. अगर आप अपने बेहतर वेट के 5 किलोग्राम के भीतर रहते हैं तो पीठ दर्द का मैनेज किया जा सकता है.

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अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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नए शब्द सीखने से मिलती है खुशी और आनंद

Photo by Hannah Busing on Unsplash - Dainik Bhaskar

केटी स्टीन मेट्ज
ईस्ट लंदन यूनिवर्सिटी में पॉजिटिव मनोविज्ञान के लेक्चरर टिम लोमस एक अलग तरह के काम में लगे हैं। वे आनंद की भावनाएं व्यक्त करने वाले ऐसे शब्दों का संग्रह कर रहे हैं जिनके लिए अंग्रेजी भाषा में शब्द नहीं है। लोमस कहते हैं,हर शब्द एक नए क्षितिज पर खुलने वाली खिड़की के समान है। वे अब तक कई लोगों की मदद से लगभग एक हजार शब्द जमा कर चुके हैं। इसमें शरारत कर भविष्य बतानेवाला विश्लेषक रहे व्यक्ति की चमकती आंखों के लिए डच शब्द प्रीटूजीस,संगीत सुनने के आनंद से जुड़ा अरेबिक तरब और प्रेमी-प्रेमिका से बिछुड़ने के दर्द भरे अहसास को बताने वाला शब्द क्रिओल तबानका शामिल हैं।

लोमस अपने मनोवैज्ञानिक विश्लेषण को सकारात्मक कोशरचना की संज्ञा देते हैं। यदि आप ऑनलाइन positive lexicography सर्च करेंगे तो उनका डाटा बेस मिल सकता है। लोग अनुवाद न किए जाने वाले शब्दों की ओर आकर्षित होते हैं। लोमस इन्हें जिंदगी जीने की नई संभावनाएं बताने का माध्यम भी मानते हैं। ऐसे शब्द लोगों के लिए प्रसन्नता अनुभव करने या ऐसी भावनाओं का आनंद लेने का माध्यम बनते हैं जिनका पहले नाम नहीं लिया जा सकता था। जापानी शब्द ओहानामी को देखिए। यह दूसरे लोगों के साथ मिलकर फूलों की प्रशंसा करने के लिए है।

लोमस के कोश के शब्दों पर गौर करें तो वे हमें खुशनुमा भावनाओं का अहसास कराएंगे। अपने पसंदीदा शब्द के बारे में पूछे जाने पर लोमस भविष्य बतानेवाला विश्लेषक जर्मन शब्द फर्नवेह का जिक्र करते हैं। यह दूर-दराज के इलाकों में जाने की इच्छा दर्शाता है। यह अनजाने स्थानों पर जाने की चाह से भी जुड़ा है। डेनिश शब्द मोर्गेनफ्रिस्क भी आनंददायी है। यह रात की अच्छी नींद को बताता है। लेटिन शब्द ओटियम अपने समय पर नियंत्रण होने के आनंद का बखान करता है।

8 जनवरी 1024 सोमनाथ की लूट: 50 हजार पुजारियों और भक्तों का कत्ल

रमेश शर्मा

इतिहास में कुछ तिथियाँ और उनमें घटी घटनायें ऐसी हैं कि जिनके स्मरण से आज भी रोंगटे होते हैं। ऐसी ही एक घटना हैं सोमनाथ की लूट और वहां उपस्थित श्रद्धालुओं की सामूहिक हत्याएँ। यूँ तो सोमनाथ का इतिहास लूट, विध्वंस और हत्याकांड से भरा है। पर मेहमूद गजनवी की लूट इतनी बीभत्स थी कि जिसका वर्णन हृदय को विदीर्ण कर देता है।
सोमनाथ की लूट और विध्वंस की यह घटना 8 जनवरी 1024 की है। उस दिन लुटेरे मेहमूद गजनवी और उसकी फौज ने केवल सोमनाथ मंदिर का विध्वंस किया बल्कि वहां उपस्थित एक भी व्यक्ति को जीवित न छोड़ा । महिलाओं का मान हरण किया गया और फिर क्रूरता से भरी मौत दी गई ।
सोमनाथ में विदेशी आक्रांताओं की यह पहली लूट नहीं थी। इस पहले और बाद में भी लूट हुई है और विध्वंस हुआ है। लेकिन इस लूट की क्रूरता और हिंसा के वर्णन के लिये शब्दों की सीमा भी बाँध नहीं पाती ।
सोमनाथ में पहली लूट सिंध में तैनात अरब के गवर्नर जुनायद ने की थी । यह गवर्नर वही है जो सिंध में मोहम्मद बिन कासिम की फतह के बाद तैनात हुआ था । जुनायद ने समुद्री रास्ते से हमला बोला और लूट कर लौट गया । जिसका पुनरुद्धार गुजरात के शासक नागभट्ट ने किया था ।
लेकिन मेहमूद गजनवी की लूट साधारण नहीं थी वह पूरी तैयारी से आया था । इस लूट और विध्वंस का वर्णन भारतीय इतिहास में कम और अल्बरूनी के वर्णन में अधिक मिलता है । बाद में जो भी लिखा गया उसका आधार अल्बरूनी का ही वर्णन है । अल्बरूनी ने न केवल लूट और विध्वंस का वर्णन किया है बल्कि लूट और आक्रमण की रणनीति का उल्लेख किया है । इस वर्णन के अनुसार मेहमूद ने अपने कुछ एजेन्ट पहले भेज दिये थे जो वेश बदल कर रहते थे और उन्होंने पूरी जमावट कर ली थी। जिसमें कुछ व्यापारियों के वेष में तो कुछ फकीरों के वेष में थे। यही नहीं मेहमूद ने एक नजूमी को भी भेजा था। नजूमी यनि भविष्य बताने वाला । जब मेहमूद ने गुजरात पर आक्रमण किया तब गुजरात में भीमदेव का शासन था। नजूमी ने राजा को चौबीस घंटे रुक कर मुक़ाबला करने की सलाह दी थी । यह मेहमूद की योजना थी। वह रास्ते में युद्ध लड़ना नहीं चाहता था और पूरी शक्ति के साथ सोमनाथ पहुंचना चाहता था। इसलिए उसने जो मार्ग चुना था वह लंबा जरूर था पर भारतीय रियासतों के किनारे से निकला था। उसने रास्ते में केवल दो स्थानों में युद्ध लड़ा। बाकी जगह रसद और भेंट लेकर आगे बढ़ता रहा।
गुजरात के राजा ने चौबीस घंटे रुकने की बात मानी। और रुक गया। मेहमूद ने इस समय का फायदा उठाया और सीधा सोमनाथ धमक गया। राजा अधिकांश सेना राजधानी की सुरक्षा में लगी रही। मंदिर की सुरक्षा के लिये सेना पहुंच ही न सकी।
उस दिन वहां कोई उत्सव चल रहा था । आँधी की तरह दौड़ते आये हमलावरों से बचने के लिये भी वीरावल के लोग मंदिर में शरण लेने पहुंच गये । तब मंदिर के भीतर कोई पचास हजार स्त्री पुरुष और बच्चे थे । यह आकड़े भी अल्बरूनी ने ही लिखे हैं । गजनवी के सिपाही आँधी की तरह टूट पड़े । जिनकी संख्या पाँच हजार थी । सबसे पहले कत्ले-आम शुरू हुआ । और योजना के अनुसार एक दस्ते ने शिवलिंग का विध्वंस किया । वहां जितने लोग थे सबको यातनायें देकर धन एकत्र किया गया । पहले पुरूषों और बच्चो को मारा फिर महिलाओं को । शायद ही कोई महिला ऐसी बची हो जिसके साथ बलात्कार न हुआ हो । सैकड़ो महिलाओं को पशुओं की भांति बांधकर ले जाया गया जिन्हे बाद में गुलामों के बाजार में बेचने के लिये भेज दिया गया ।
इस विध्वंस के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और धार के राजा भोज ने जीर्णोद्धार कराया । लेकिनसोमनाथ में गजनवी की लूट अंतिम नहीं थी । इसके बाद दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में लूट की विध्वंस किया । फिर 1706 में औरंगजेब ने भी यही दोहराया ।
सोमनाथ कुल सात बार लूटा गया । इस समय जो सोमनाथ मंदिर दिख रहा है इसका श्रेय के एम मुंशी और सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है । स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सुविख्यात लेखक और नेहरूजी की केबिनेट में रहे के एम मुंशी जी ने पहली बार भग्न सोमनाथ के दर्शन 1922 में किये थे तभी उनके मन में संकल्प आया जो 1955 में पूरा हुआ । इसका पूरा वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक “पिलग्रिमेज टू फ्रीडम” में किया है । उन्होंने अपनी इस पुस्तक में एक कैबिनेट बैठक के बाद नेहरूजी से हुई बातचीत का भी विवरण दिया है जिसमें नेहरूजी ने सोमनाथ के जीर्णोद्धार के प्रति अपनी असहमति जताई थी ।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं। चिरौरी न्यूज़ का लेखक की विचारों से सहमत होना अनिवार्य नहीं है।)

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Jammu Kashmir: पूछ रहे कश्मीर के लोग- कहां गया खुद को जम्मू-कश्मीर का हितैषी बताने वाला पीएजीडी

पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन ने सार्वजनिक तौर इससे नाता तोड़ लिया।

नेशनल कांफ्रेंस जिसने दिसंबर में ही पीएजीडी को ठंडे बस्ते में डाल दिया था की बीते तीन माह के दौरान जितनी बार भी बैठक हुई किसी भी नेता ने इसका और पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति का कोई जिक्र नहीं किया।

श्रीनगर, नवीन नवाज: उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात के बाद जम्मू कश्मीर को फिर से राज्य बनाए जाने की शुरू हुई अटकलों के बीच लोग अब पूछने लगे हैं कि आखिर कहां गया-पीपुल्स एलायंस फार गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी)। कोई भी इसके भविष्य को लेकर चिंतित नहीं है बल्कि इसके कर्णधारों की अवसरवादिता पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि पीएजीडी कौन सी गुफा में गुम हो चुका है। नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, माकपा, अवामी नेशनल कांफ्रेंस सरीखे दल जो कल तक इसके एजेंडे की कामयाबी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान करने की बात करते थे, अब इसे अपने लिए कुर्बान करते हुए नजर आ रहे हैं।

पीएजीडी की शुरुआत चार अगस्त 2019 को पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला के घर हुई एक सर्वदलीय बैठक में हुई थी। इसमें महबूबा मुफ्ती समेत सभी कश्मीर केंद्रित दलों ने भाग लेते हुए जम्मू कश्मीर की विशिष्ट पहचान बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठाने का एलान किया था। इसे गुपकार घोषणा का नाम दिया था। इसके बाद पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को संसद में पारित किए जाने के साथ ही जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय हो गया।

प्रशासन घाटी में कश्मीरी हिंदू कर्मियों को मिल रही धमकियों को हल्के में न ले

जम्मू कश्मीर में दो निशान-दो विधान की व्यवस्था समाप्त हो गई और जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय मुख्यधारा में पूरी तरह शामिल हो गया। इसके बाद 20 अक्टूबर 2020 को पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा के साथ विचार विमर्श के बाद फारूक अब्दुल्ला ने माकपा, पीपुल्स कांफ्रेंस और पीपुल्स मूवमेंट व अवामी नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर पीएजीडी का गठन किया। मकसद-जम्मू कश्मीर में पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति को बहाल कराना बताया गया। पीएजीडी की कमान डा. फारूक अब्दुल्ला को सौंपी गई और उपाध्यक्ष महबूबा बनीं। सज्जाद गनी लोन को प्रमुख प्रवक्ता बनाया गया।

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अलबत्ता, पीएजीडी को लेकर आम कश्मीरियों ने पहले ही दिन से आशंका जताई थी कि इसमें जो भी शामिल है उसने जनभावनाओं का शोषण कर, एक बार फिर जम्मू कश्मीर की सियासत में अपनी प्रासंगिकता साबित करने का एक सुरक्षित रास्ता तैयार किया है। पीएजीडी ने पहले डीडीसी चुनावों का विरोध किया और फिर उनमें शामिल हो गई। चुनाव में पीएजीडी ने मिलकर अपने उम्मीदवार उतारे थे, उसके बावजूद पीएजीडी चार जिलों मेें ही अपने चेयरमैन बना पाई। डीडीसी चुनावों के बाद से पीएजीडी कहीं गायब हो चुका है। पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन ने सार्वजनिक तौर इससे नाता तोड़ लिया। पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा भी इसे लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दे रही हैं बल्कि वह पीएजीडी पर पूछे जाने वाले सवालों से भी बचती फिर रही हैं।

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नेशनल कांफ्रेंस जिसने दिसंबर में ही पीएजीडी को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, की बीते तीन माह के दौरान जितनी बार भी बैठक हुई, किसी भी नेता ने इसका और पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति का कोई जिक्र नहीं किया। सबसे बड़ी बात यह कि नेशनल कांफ्रेंस जो कल तक जम्मू कश्मीर में परिसीमन का विरोध कर रही थी, अब इसका हिस्सा बनने के लिए तैयार हो चुकी है। हालांकि वह इसका बायकाट करती आ रही थी।

कश्मीर में सर्दियों का सब से कठिन दौर होगा शुरू

केंद्र के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहता है नेकां : कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ आसिफ कुरैशी ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस बीते कुछ समय से केंद्र के साथ अपने संबंध बेहतर बनाने के प्रयास में है। नेशनल कांफ्रेंस इस समय कश्मीर की सियासत में खुद को पूरी तरह से दरकिनार महसूस कर रही है। उन्होंने कहा कि नेकां का यह कहना कि वह परिसीमन की प्रक्रिया में शामिल होने पर विचार कर रही है, बता देता है कि वह पीएजीडी से छुटकारा पाना चाहती है और यह स्थिति तब है, जब डा. फारूक अब्दुल्ला इसके अध्यक्ष हैं।

अब गूगल पर भी डोगरी में मिल सकेंगी जानकारियां

अब कोई पीएजीडी का जिक्र नहीं करता : वरिष्ठ पत्रकार अहमद अली फैयाज ने कहा कि कश्मीर में कोई भी पीएजीडी का जिक्र नहीं करता। लोग पहले ही दिन से इस पर सवाल उठा रहे थे। अब तो बिल्ली पूरी तरह थैले से बाहर आ चुकी है। इसमें जो भी घटक हैं, सभी में वर्चस्व की लड़ाई है और उनमें से कोई भी ज्यादा देर तक सत्ता से बाहर नहीं रहना चाहता। सज्जाद गनी लोन तो पहले ही किनार कर चुके हैं। नेकां बिना बोले ही अलग है, वह इसलिए एलान नहीं करती क्योंकि डा. फारूक अब्दुला इसके अध्यक्ष हैं। महबूबा मुफ्ती का पूरा ध्यान इस समय ईडी और एनआइए से अपनी जान बचाने पर केंद्रित है। वह भी अब पीएजीडी को लेकर ज्यादा रुचि नहीं दिखा रही हैं।

कश्मीरी हिंदू कर्मियों ने प्रदर्शन कर मांगी सुरक्षा

राजनीतिक अवसरवादिता का गठजोड़ : कश्मीर मामलों के जानकार और लेखक रमीज मखदूमी ने कहा कि पीएजीडी तो एक तरह से राजनीतिक अवसरवादिता का गठजोड़ है। इसलिए यहां आम कश्मीरी इसके नेताओं पर कटाक्ष करते हुए पूछता है कि यह कौन सी गुफा में छिपा है। पीएजीडी के नेताओं में बीते छह माह से एक भी बैठक नहीं हुई है।

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