Active Vs Passive म्युचूअल फंड- क्या है आपके लिए सही?
अगर लार्ज कैप में ही निवेश करना है तो पैसिव फंड चुनिए और स्मॉल, मिड या फ्लेक्सी कैप की कैटेगरी में निवेश करना है तो एक्टिव फंड चुन सकते हैं.
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एक्टिव या पैसिव म्यूचुअल फंडों में से किसमें निवेश करना ज्यादा फायदेमंद?
बेस्ट फंडों की लिस्ट हर साल बदलती रहती है. ऐसे में फंड का चुनाव एक्टिव इनवेस्टिंग में बेहद महत्वपूर्ण पहलू है.
एक फंड ने क्या होल्ड किया है या वह कहां निवेश करता है, यह पहलू सेलेक्शन से जुड़ा है. टाइमिंग और सेलेक्शन दोनों तय करते हैं कि कोई एक्टिव फंड अपने बेंचमार्क से कितना अधिक रिटर्न जेनरेट करता है. म्यूचुअल फंड की कोई स्कीम बेंचमार्क से जितना अधिक रिटर्न जेनरेट करती है, उसे 'अल्फा' कहते हैं. बेंचमार्क अमूमन मार्केट इंडेक्स होते हैं. इनमें निफ्टी, सेंसेक्स, जूनियर निफ्टी, सीएनएक्स मिडकैप इत्यादि शामिल हैं.
फंड मैनेजर स्कीम के पोर्टफोलियो में अपनी समझ के अनुसार बदलाव करते रहते हैं. वे कमजोर प्रदर्शन करने वाले सेक्टरों में निवेश घटा सकते हैं. ऐसे शेयरों में निवेश बढ़ा सकते हैं, जिनके अच्छा करने की उम्मीद है. पोर्टफोलियो से उन शेयरों को विदा कर सकते हैं जिनसे कुछ खास अपेक्षा नहीं है. वे अपने इंडेक्स के अनुरूप शेयरों को होल्ड नहीं करते हैं. न इंडेक्स के अनुपात में इनमें निवेश किया जाता है. इसके बजाय वे सक्रिय रूप से अपने पोर्टफोलियो को मैनेज करते हैं.
बेस्ट फंडों की लिस्ट हर साल बदलती रहती है. ऐसे में फंड का चुनाव एक्टिव इनवेस्टिंग में बेहद महत्वपूर्ण पहलू है. नितिन को परफॉर्मेंस हिस्ट्री और पोर्टफोलियो स्ट्रैटेजी का मूल्यांकन करने के बाद फंडों का चुनाव करना चाहिए.
वहीं, पैसिव इनवेस्टिंग में मार्केट या साइकिल की चिंता करने की जरूरत नहीं होती है. नितिन जानते हैं कि बाजार की टाइमिंग मुश्किल है और भविष्य का पूर्वानुमान लगाना आसान नहीं है. ऐसे में वह पूरी तरह से पैसिव रहने का विकल्प चुन सकते हैं. इसके पक्ष में कई बातें जाती हैं. इससे उनके लिए इंडेक्स को खरीदना आसान हो जाता है. यह सुनिश्चित करेगा कि वह इंडेक्स जितना रिटर्न पाएंगे. वह कम कॉस्ट वाले ईटीएफ या इंडेक्स फंड के जरिये लार्ज, मिड और स्मॉलकैप इंडेक्स खरीद सकते हैं. इसमें उन्हें सेक्टर, शेयर या फंड के बारे में फैसला करने की जरूरत नहीं है.
उन्हें शेयरों का एक सेट होल्ड करने वाले मार्केट इंडेक्स से संतुष्ट रहना होगा. उन्हें इस बात को समझना होगा कि इसी समय दूसरे इंडेक्स से ज्यादा रिटर्न बना सकते हैं. लेकिन, इसके लिए उन्हें ज्यादा जोखिम लेना होगा.
नितिन के लिए पैसिव स्ट्रैटेजी तब बिल्कुल ठीक है अगर उनके पास समय और ऊर्जा नहीं है. न ही निवेश के इंस्ट्रूमेंट समझने में रुचि है. लेकिन, वह चाहते हैं कि लंबी अवधि में उनके पैसे पर ठीकठाक रिटर्न मिले. अगर नितिन के पास कोई एडवाइजर है तो वह फंड के चुनाव के लिए उनका भरोसा कर सकते हैं.
इस पेज की सामग्री सेंटर फॉर इंवेस्टमेंट एजुकेशन एंड लर्निंग (सीआईईएल) के सौजन्य से. गिरिजा गादरे, आरती भार्गव और लब्धि मेहता का योगदान.
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एक्टिव और पैसिव म्यूचुअल फंड में किसमें करें निवेश?
अमेरिका जैसे विकसित बाजारों में निवेशक शेयरों में पैसा लगाने के लिए पैसिव फंडों को ज्यादा तरजीह देते हैं.
इस तरह की इंवेस्टमेंट स्ट्रैटेजी के पीछे आइडिया यह है कि सैद्धांतिक रूप से लंबी अवधि तक प्रदर्शन के मामले में बाजार को लगातार पीछे छोड़ पाना संभव नहीं है. इसलिए इंडेक्स में निवेश कर सुकून से बैठ जाने में समझदारी है. बाजार में व्यापक बढ़त इंडेक्स में दिखार्इ देती है. कम शब्दों में कहें तो शेयर बाजार से पैसा कमाने के लिए यह निष्क्रिय रणनीति है.
दूसरी ओर पैसिव फंड्स बनाम एक्टिव फंड्स एक्टिव फंड इंडेक्स को पिछाड़ने की कोशिश करते हैं. एक्टिव फंड मैनेजर इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में अच्छे शेयरों को चुनने के लिए पूरी मशक्कत करते हैं. कुछ शेयर हमेशा दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं. इस तरह अगर फंड मैनेजर इस तरह के शेयर चुनने में सफल होते हैं, जो सामान्य से ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं तो स्कीम व्यापक बाजार से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.
हालांकि, जैसा कि पहले भी कहा गया है कि विकसित बाजारों में इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन करने की सीमा काफी हद तक खत्म हो चुकी है. इसलिए विकसित बाजारों में पैसिव स्ट्रैटेजी का फायदा हुआ है. यही कारण है कि ज्यादातर निवेशक शेयर बाजार में निवेश के लिए कम मैनेजमेंट फीस के साथ इंडेक्स फंड या एक्सचेंज ट्रेडेड फंड चुनते हैं.
वैसे, एक्सपर्ट मानते हैं कि भारत अब भी इस कुनबे में शामिल नहीं हुआ है. उनका तर्क है कि भारत जैसे विकासशील देश में अचानक कंपनियां अपनी पहचान बना सकती हैं. इस तरह भारतीय बाजार में भारी रिटर्न देने वाली कंपनियां उपलब्ध रहेंगी. कर्इ म्यूचुअल फंड मैनेजरों को भी लगता है कि भारत में अभी एक दशक तक एक्टिव फंड मैनेजमेंट प्रासंगिक रहेगा.
अंत में आपको यही सलाह है कि अगर आप फंड मैनेजर का जोखिम पैसिव फंड्स बनाम एक्टिव फंड्स हटाकर निवेश की निष्क्रिय रणनीति अपनाना चाहते हैं तो आप इंडेक्स फंडों को चुन सकते हैं. इसमें याद रखना होगा कि आप कम लागत वाली स्कीम का चुनाव करें.
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Active And Passive Investing: क्या हैं एक्टिव और पैसिव निवेश के बीच का अंतर? | जानिए Moneyfront के फाउंडर मोहित गंग के साथ फायदे की बात!
Difference between active and passive investment: पैसिव फंड में मार्केट इंडेक्स ट्रैक करने के बाद ही निवेश से जुड़े फैसले लिए जाते हैं. जबकि एक्टिव निवेश में, यह काम मैनेजर का देखना होता है कि वे किस तरह से निवेश पर मुनाफा कमाएं.
Published: August 7, 2021 2:00 PM IST
What is Active And Passive Investing/ क्या हैं एक्टिव और पैसिव निवेश के बीच का अंतर?: एक्टिव और पैसिव निवेश पर बहस करना कोई नई बात नहीं है. म्यूचुअल फंड में दो बड़ी कैटेगरी है. इनमें से एक कैटेगरी का नाम एक्टिव फंड्स (Active Funds) और दूसरे का नाम पैसिव फंड्स (Passive Funds) है. पैसिव फंड में मार्केट इंडेक्स ट्रैक करने के बाद ही निवेश से जुड़े फैसले लिए जाते हैं. जबकि एक्टिव निवेश में, यह काम मैनेजर का देखना होता है कि वे किस तरह से निवेश पर मुनाफा कमाएं. इसके अंतर (Difference between active and passive investing) को जानने के लिए कि दोनों में से क्या बेहतर है, मोहित गैंग, संस्थापक, मनीफ्रंट, आपको इसी बारे में पूरी जानकारी देते हैं, जो आपके निर्णय को आसान बना देगा. अभी वीडियो देखें.
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डिस्क्लैमर : इस वीडियो में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं न कि फर्म के विचार। यह वीडियो केवल शैक्षिक उद्देश्य के लिए है.
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इंडेक्स फंड में कम लागत में मिलेगा ज्यादा फायदा: सेंसेक्स जैसे इंडेक्स की रफ्तार का फायदा लेने की रणनीति बेहतर, यहां जानें इससे जुड़ी खास बातें
देश में म्यूचुअल फंड में निवेश के तरीके तेजी से बदल रहे हैं। एक्टिव फंड्स में निवेशकों की दिलचस्पी कम हो रही है। इनके प्रबंधन में मैनेजर की सक्रिय भूमिका होने से लागत ज्यादा होती है। दूसरी तरफ पैसिव स्कीम्स में फंड मैनेजर सक्रिय भूमिका नहीं निभाते, लिहाजा उनकी लागत कम होती है। अब दोनों तरह की स्कीम्स में रिटर्न का अंतर कम रह गया है इसलिए पैसिव स्कीम्स की लोकप्रियता बढ़ने लगी है। यही वजह है कि 2020 के मुकाबले 2021 में पैसिव फंड के एयूएम में 57% बढ़ोतरी हुई। खास तौर पर इंडेक्स फंड में न सिर्फ निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है, बल्कि म्यूचुअल फंड हाउस भी इन्हें ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इंडेक्स फंड का पोर्टफोलियो सरल होता है। इसमें वही शेयर होते हैं, जो सेंसेक्स और निफ्टी जैसे स्टॉक एक्सचेंज के इंडेक्स में होते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी म्यूचुअल फंड हाउस ने निफ्टी 50 इंडेक्स फंड लॉन्च किया है तो इसमें निफ्टी के ही 50 शेयर होंगे। एक्सिस एएमसी के हेड प्रोडक्ट्स एंड अल्टर नेटिव्स अश्विन पाटनी आपको इंडेक्स फंड में निवेश के फायदे बता रहे हैं।
ढेर सारे शेयरों में एक साथ निवेश
यदि बीएसई 500 इंडेक्स को ट्रैक करने वाले किसी फंड में निवेश करते हैं तो पूरा निवेश बीएसई की टॉप-500 कंपनियों में फैल जाएगा। यदि निफ्टी 100 इंडेक्स को ट्रैक करने वाले फंड में पैसा लगाते हैं तो असल में एनएसई के टॉप-100 शेयरों में एक साथ निवेश कर रहे होते हैं।
निवेश की कम लागत का फायदा
इंडेक्स फंड का एक्सपेंस रेश्यो 0.पैसिव फंड्स बनाम एक्टिव फंड्स 02-0.2% होता है। यानी यदि ऐसे फंड में आप 1 लाख का निवेश करते हैं तो इसकी लागत सिर्फ 20-200 रुपए बैठेगी। दूसरे एक्टिव फंड का एक्सपेंस रेश्यो 0.5-1.0% होने से इनमें 1 लाख रुपए के निवेश पर 500-1,000 रुपए खर्च करने होंगे।
रणनीति में पारदर्शिता
भारी उतार-चढ़ाव वाले मौजूदा दौर में निवेशक रिटर्न के साथ-साथ पोर्टफोलियो में पारदर्शिता भी चाहते हैं। इंडेक्स फंड में उन्ही कंपनियों के शेयर शामिल करने की अनुमति होती है जो संबंधित इंडेक्स में लिस्टेड होती हैं। ऐसे में निवेशकों को पता होता है कि उनका पैसा पैसिव फंड्स बनाम एक्टिव फंड्स किन शेयरों में लगाया जा रहा है।
सेक्टोरल इन्वेस्टिंग
सभी सेक्टरों के शेयर एक साथ बेहतर रिटर्न नहीं देते। दो साल शानदार रिटर्न देने वाले आईटी कंपनियों के शेयरों में इन दिनों गिरावट आ रही है। दूसरी तरफ एफएमसीजी और ऑटो शेयर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में निवेशक अच्छी संभावना वाले पसंद के सेक्टोरल इंडेक्स में निवेश कर सकते हैं।
थीम आधारित निवेश
कुछ साल से क्लाउड कम्प्यूटिंग, इलेक्ट्रिक व्हीकल और न्यू इकोनॉमीज जैसे थिमैटिक इन्वेस्टमेंट का चलन है। फंड मैनेजर भी ऐसे विषय या थीम पर नजर गड़ाए रहते हैं जो भविष्य में स्थिरता और तेज ग्रोथ दिखाने में सक्षम हों। इंडेक्स फंड निवेश में ऐसे थिमैटिक इनोवेशन का लाभ उठाने का मौका देते हैं।
दो तिहाई एक्टिव फंड का रिटर्न टॉप-100 शेयरों के बेंचमार्क से कम
15 साल से म्यूचुअल फंड का अल्फा यानी बेंचमार्क से ऊपर रिटर्न घट रहा है। हाल के सालों में दो तिहाई एक्टिव फंड का रिटर्न टॉप-100 शेयरों के बेंचमार्क से कम रहा है। ऐसे में इंडेक्स फंड ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं। इनकी लागत कम होती है।
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