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F एंड O बैन पीरियड – F एंड O बैन की गणना के लिए कारणों को जानें

अब यह प्रश्न आता है कि, MWPL क्या है और इसकी गणना कैसे की जा सकती है?

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F एंड O बैन की गणना कैसे करें?

बाज़ार की वाइड पोजीशन लिमिट निम्नलिखित क्राइटेरिया का निचला स्तर है:-

  • एवरेज शेयर के 30 गुना जो कि पिछले महीने के दौरान एक्सचेंज के कैश सेगमेंट में दैनिक रूप से ट्रेड किये जाते हैं׀
  • नॉन-प्रोमोटर्स के द्वारा फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? होल्ड किये गए शेयरों की 20% संख्या अर्थात् किसी विशेष स्टॉक का फ्री फ्लोट׀

तो, आपको आपकी बाज़ार की वाइड-पोजीशन लिमिट मिल गयी है, अब आपको किसी एक विशेष स्टॉक में बाज़ार की वाइड-पोजीशन लिमिट संख्या की ओपन इंटरेस्ट की कुल संख्या के साथ तुलना करनी चाहिए׀

यदि ओपन इंटरेस्ट की कुल संख्या बाज़ार की वाइड पोजीशन लिमिट के 95% से अधिक या उसके बराबर है तो वह स्टॉक बैन पीरियड में प्रवेश करेगा׀

वह स्टॉक तब तक बैन पीरियड में रहेगा जब तक कि स्टॉक का कुल ओपन इंटरेस्ट बाज़ार की वाइड पोजीशन लिमिट से 80% या उससे कम नहीं हो जाता׀

केवल इसके बाद ही सामान्य ट्रेडिंग फिर से शुरू होगी׀

आप स्टॉकएज एप्प का उपयोग करके अगले दिन ट्रेडिंग के लिए स्टॉक को फ़िल्टर करने के लिए ऑप्शन ट्रेडिंग स्कैन का भी उपयोग कर सकते हैं׀

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Future Trading क्या होता है?

Future Trading क्या होता है?

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हेल्लो दोस्तों आज एकबार फिर से आप सभीको internet sikho में बहुत बहुत स्वागत है.दोस्तों आप आगर स्टॉक मार्किट में ट्रेडिंग करते है तोह future trading के बारे में भी सुने ही होंगे.लेकिन फिर भी आज में आपको future trading के बारे में थोडा जानकारी देना चाहूँगा जिससे नए ट्रेडर्स के लिए भी थोडा मदत मिल सके.

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future trading क्या होता है?what’s future trading?

future trading या फिर future contract का मतलब होता है की आप किसी भी स्टॉक को एक्स्पिआरी तारीख से पहले उससे खरीदने या बेचने का बचन देते है कोई भी तै किया हुआ दाम पार .आगर आप ऐसे स्टॉक बेचे तोह उससे आपको किसी तै किया हुआ कीमत पार खरीदने वाला को ट्रान्सफर करना पड़ता है.

future trading कैसे होता है?

तैय किया हुआ तारीख पार यानि की एक्सपायरी के तारीख पार वोह कॉन्ट्रैक्ट ख़तम होता है.जैसे हर गुरुबार को बैंक निफ्टी के weekly कॉन्ट्रैक्ट ख़तम होता है.हर कॉन्ट्रैक्ट एसेट या cash भुगतान की बाकाया राशि देने के से या मुनाफा लेने से उसी तारीख को समाप्त हो जाता है.और जोह बेकती future कॉन्ट्रैक्ट लेने वाले बेकती को लागे की आगे भी मुनाफ़ा कामाया जा सकता है तोह कॉन्ट्रैक्ट को रोलओवर कर सकते है यानि की नेक्स्ट माहीने के लिए उससे continiue करके भी जादा से जादा मुनाफा कामाते है.और आगर future कॉन्ट्रैक्ट्स लेने वाला आदमी उसके लेने वाले positions से खुस नहीं है या फिर नुक्सान हो राहा है तोह वोह उससे expiary के पहले ही उसको बेच सकते है और लोस बुक भी कर सकते है.

दोस्तों यह था future tarding की पूरी जानकारी और मुझे उम्मीद है की आपको यह पोस्ट से समझ में आजाएगा की future trading कैसे होता है और future फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? ट्रेडिंग का क्या मतलब है.स्टॉक मार्किट से जुड़े हुए हर एक टॉपिक के बारे में जानने के लिए market basics catogory को चेक करे उसमे आपको स्टॉक मार्किट से जुड़े हुए बहुत पोस्ट मिल जायेगा.और ऐसे ही हर दिन एक नया पोस्ट आपके मेल बॉक्स में पाने के लिए internet sikho को subscribe करना ना भूले.

F&O: फ्यूचर्स-ऑप्शंस देते हैं कम लागत में ज्यादा पैसा कमाने का मौका

Futures & Options: आप केवल स्टॉक नहीं, बल्कि कृषि वस्तुओं, पेट्रोलियम, सोना, मुद्रा आदि में भी फ्यूचर्स-ऑप्शंस ट्रेडिंग कर सकते हैं.

  • Vijay Parmar
  • Publish Date - July 27, 2021 / 02:38 PM IST

F&O: फ्यूचर्स-ऑप्शंस देते हैं कम लागत में ज्यादा पैसा कमाने का मौका

Future & Option: कम इन्वेस्टमेंट करके ज्यादा मुनाफा कमाना कौन नहीं चाहेगा? सभी लोग ऐसा फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? चाहते हैं और उसके लिए मार्केट में कई तरह के विकल्प उपलब्ध हैं. आज हम ऐसे ही एक विकल्प, यानी फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? डेरिवेटिव्स के बारे में जानेंगे. यह आपको केवल स्टॉक नहीं, बल्कि कृषि वस्तुओं, पेट्रोलियम, सोना, मुद्रा आदि में भी ट्रेडिंग करके पैसा कमाने का मौका देता है. इससे आपको कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने में मदद मिलती है.

फ्यूचर्स (Futures) क्या होता है?

कई प्रकार के डेरिवेटिव (derivative) में से एक प्रकार है फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट. इस प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार (या विक्रेता) किसी विशेष संपत्ति की एक निश्चित मात्रा को भविष्य की तारीख में एक विशिष्ट कीमत पर खरीदने (या बेचने) के लिए सहमत होता है.

उदाहरण से समझते हैंः आपने एक फिक्स्ड तारीख पर XYZ कंपनी के 50 शेयरों को 100 रुपये में खरीदने के लिए एक फ्युचर कोन्ट्राक्ट खरीदा है. जब ये कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी होगी तब आप उसकी मौजूदा कीमत के बावजूद, 100 रुपये पर ही शेयर प्राप्त करेंगे. यहां तक कि अगर कीमत 120 रुपये तक जाती है, तो भी आपको प्रत्येक शेयर 100 रुपये पर मिलेगा, जिसका मतलब है कि आप 1,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमाते हैं. यदि शेयर की कीमत 80 रुपये तक गिरती है, तो भी आपको उन्हें 100 रुपये पर खरीदना होगा, ऐसे में आपको 1,000 रुपये का नुकसान होगा.

ऑप्शंस (Options) क्या होते हैं?

डेरिवेटिव्स के अन्य एक प्रकार को ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं. यह फ्युचर कोन्ट्राक्ट से थोड़ा अलग है जिसमें एक खरीदार (या विक्रेता) को एक विशिष्ट पूर्व-निर्धारित तिथि पर एक निश्चित कीमत पर एक विशेष संपत्ति खरीदने (या बेचने) का अधिकार देता है, लेकिन ऐसा करना उसका दायित्व नहीं होता. ऑप्शंस दो तरह के होते हैं, कॉल ऑप्शंस और पुट ऑप्शंस.

कॉल ऑप्शन – मान लें कि आपने एक निश्चित तिथि पर XYZ कंपनी के 50 शेयर 100 रुपये पर खरीदने के लिए कॉल ऑप्शन खरीदा है, लेकिन शेयर की कीमत एक्स्पायरी के वक्त 80 रुपये तक गिर जाती है, और आप 1,000 रुपये के नुकसान में चले जाते हैं. तब आपके पास 100 रुपये में शेयर नहीं खरीदने का अधिकार है, इसलिए सौदे पर 1,000 रुपये खोने के बजाय, आपको केवल कॉन्ट्रैक्ट के लिए चुकाए गए प्रीमियम का नुकसान होगा, जो बहुत कम होता है.

पुट ऑप्शंस – इस प्रकार के ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में आप भविष्य में एक सहमत मूल्य पर संपत्ति बेच सकते हैं, लेकिन ऐसा करना आपका दायित्व नहीं. यदि आपके पास XYZ कंपनी के शेयरों को भविष्य की तारीख में 100 रुपये पर बेचने का विकल्प है, और समाप्ति तिथि से पहले शेयर की कीमतें 120 रुपये तक बढ़ जाती हैं, तो आपके पास शेयर को 100 रुपये में नहीं बेचने का विकल्प है, ऐसे में आप 1,000 रुपये के नुकसान से बच सकते हैं.

फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस में ट्रेडिंगः

फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) का एक फायदा यह है कि आप इन्हें विभिन्न एक्सचेंजों पर स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकते हैं. आप स्टॉक एक्सचेंजों पर स्टॉक F&O का व्यापार कर सकते हैं, कमोडिटी एक्सचेंजों पर कमोडिटी आदि. F&O ट्रेडिंग में आपको 1 लाख रुपये के शेयर या कमोडिटी में ट्रेडिंग करने के लिए केवल 10,000 रुपये की जरूरत पड़ती है, क्योंकि आपको उसका पूरा दाम चुकाने के बजाय 10-30% मार्जिन पर सौदा करने का मौका मिलता है. आप किसी वस्तुओं को खरीदे बिना उसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव का लाभ उठा सकते हैं.

F&O ट्रेडिंग में जोखिमः

फ्यूचर्स बाजार में हेजिंग का टूल नहीं है यानी इसमें सौदे को ओपन (खुला) छोड़ते हैं या फिर स्टॉप लॉस लगाते हैं. स्टॉप लॉस न लगाया तो नुकसान ज्यादा होता है, जबकि पुट ऑप्शन में खरीदे हुए सौदे को हेज कर सकते हैं.

कमोडिटी वायदा बाजार में ट्रेडिंग के लिए यहां जानिए आसान तरीके

Market

अगर आप कमोडिटी वायदा बाजार (Commodity Futures Market) में ट्रेडिंग (Trading) करना चाहते हैं तो आपको बाजार की सही जानकारी का होना बहुत ही जरूरी है. हालांकि अभी भी बहुत से लोगों में कमोडिटी फ्यूचर्स मार्केट को लेकर जानकारी का अभाव है और यही वजह है कि कमोडिटी बाजार में ट्रेडिंग के लिए उतरे नए निवेशकों में डर बना रहता है. आज की इस रिपोर्ट में हम ऐसे ही निवेशकों के लिए जो कमोडिटी फ्यूचर मार्केट में ट्रेडिंग शुरू करना चाहते हैं, उनको बेहद आसान भाषा में कमोडिटी मार्केट की बारीकियों को समझाने का प्रयास करेंगे. तो आइए जानने की कोशिश करते हैं कि कमोडिटी वायदा बाजार में ट्रेडिंग के वे बेहद आसान तरीके क्या हैं.

कमोडिटी वायदा में कैसे शुरू करें ट्रेडिंग
निवेशकों को कमोडिटी वायदा में ट्रेडिंग के लिए सबसे पहले ट्रेडिंग अकाउंट खुलवाना पड़ेगा. निवेशक इस ट्रेडिंग अकाउंट के जरिए खरीद और बिक्री कर सकते हैं. ट्रेडिंग अकाउंट किसी ब्रोकिंग फर्म के साथ खुलवा जा सकता है. हालांकि ब्रोकर्स को MCX, NCDEX, BSE और NSE का सदस्य जरूर होना चाहिए. एक्सचेंज की वेबसाइट से ब्रोकर्स के बारे में जानकारी जुटाई जा सकती है. ट्रेडिंग अकाउंट के लिए पैन कार्ड, एड्रेस प्रूफ और बैंक अकाउंट का होना जरूरी है. MCX पर नॉन-एग्री कमोडिटी वायदा में ट्रेडिंग ज्यादा होती है. NCDEX पर एग्री कमोडिटी वायदा में ट्रेडिंग ज्यादा होती है. हालांकि BSE और NSE पर भी कुछ कमोडिटी में ट्रेडिंग होती है. नॉन-एग्री कमोडिटी में सोना-चांदी, क्रूड और मेटल शामिल हैं. वहीं एग्री कमोडिटी में ग्वार, चना, तिलहन, मसाला और शुगर में ट्रेडिंग होती है.

खरीद-बिक्री के लिए एक्सचेंज पर पहले से मार्जिन तय
कमोडिटी बाजार से जुड़े जानकारों का कहना है कि कुछ रकम देकर पूरे सौदे को उठाना मार्जिन कहा जाता है. वहीं दूसरी ओर हाजिर बाजार में सौदे का पूरा भुगतान फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? करना पड़ता है. हर कमोडिटी की खरीद-बिक्री के लिए एक्सचेंज पर पहले से मार्जिन तय है. आमतौर पर मार्जिन मनी 3 फीसदी से 5 फीसदी के बीच है. उतार-चढ़ाव की स्थिति में एक्सचेंज अतिरिक्त मार्जिन भी लगाता है. जानकार कहते हैं कि कमोडिटी ट्रेडिंग में शेयर बाजार की तरह लंबी अवधि नहीं होती है. कमोडिटी मार्केट में दो से तीन सीरीज में ही कारोबार होता है. निवेशकों को खरीद-बिक्री एक निश्चित अवधि में करना जरूरी है. शुरुआत में मिनी लॉट में ट्रेड करना समझदारी भरा कदम माना जाता है. बाजार की समझ बढ़ने के बाद फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? बड़े लॉट में ट्रेड करना चाहिए और हर सौदे में स्टॉपलॉस जरूर लगाना चाहिए. निवेशकों को कई लॉट में ट्रेडिंग के लालच में नहीं फंसना चाहिए. जानकारों का कहना है कि लिक्विड कमोडिटी में ट्रेड करना फायदेमंद रहता है.

जानकार कहते हैं कि कमोडिटी मार्केट में ट्रेडिंग के लिए आपको देश दुनिया की खबरों पर नजर बनाए रखनी होगी. कमोडिटी मार्केट पर दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों के फैसले का असर साफतौर पर देखा जाता है. साथ ही एग्री कमोडिटी की बात करें तो फसल और उत्पादन अनुमान का असर भी दिखाई पड़ता है. जानकार कहते हैं कि कमोडिटी मार्केट में डिविडेंड और बोनस नहीं मिलता है और ट्रेडर्स को सौदा कटने के बाद ही फायदा या नुकसान होता फ्यूचर्स ट्रेडिंग कैसे किया जाता है? है.

आइए जानते हैं फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग क्या है?

What is Option and Future Trading in Hindi

फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग क्या है? | What is Option and Future Trading in Hindi :

दुनिया भर के शेयर बाजारों में वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव की वजह से शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। चाहे वह कोई स्टॉक हो, कृषि से संबंधित उत्पाद हो, पेट्रोल की कीमतों में उछाल आना और गिरावट होना आदि ये सब एक आम बात मानी जाती है। कीमत अस्थिरता के वजह से मांग और आपूर्ति में असंतुलन की स्थिति, जंग, राजनीतिक घटनाक्रम जैसी चीजें शामिल होती है। कीमतों में अस्थिरता के कारण सबसे बड़ी समस्या निवेशकों के सामने होती है। ऐसे में फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग के माध्यम से बाजार में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम किया जा सकता है।

फ्यूचर ट्रेडिंग क्या है? (What is Future Trading in Hindi?)

फ्यूचर ट्रेडिंग (Future Trading) एक पहले से निर्धारित समय पर एक निश्चित मूल्य पर किसी भी परिसंपत्ति (Assets ) को खरीदने या बेचने के लिए अनुबंध करना होता है। यदि कोई फ्यूचर कांट्रैक्ट खरीदता है तो इसका मतलब है कि वह किसी निश्चित समय पर उस वस्तु की कीमत पर भुगतान करने का वादा कर रहा है। यदि आप फ्यूचर कांट्रैक्ट को बेचते हैं तो खरीदार को किसी विशेष समय पर एक निश्चित कीमत पर परिसंपत्ति का हस्तांतरण करने का वादा करते हैं।

उदाहरण के लिए मान लीजिए आप X कंपनी के 100 शेयर को ₹100 प्रति शेयर की कीमत से फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (future contract) के लिए एक निश्चित तिथि निर्धारित करते हैं। कुछ समय बाद आपको पता चलता है कि फ्यूचर कांट्रैक्ट खत्म होने से पहले कंपनी X के शेयर के भाव ₹110 तक बढ़ गए हैं। लेकिन आपके लिए शेयर का भाव अब भी ₹100 प्रति शेयर रहेगा। फलस्वरुप आपको शेयर पर कुल ₹1000 का मुनाफा होगा। हालांकि शेयर के भाव गिर भी सकते हैं। यदि शेयर के भाव गिरकर ₹90 प्रति शेयर हो जाते हैं तो आपको 100 शेयर पर ₹1000 का नुकसान झेलना पड़ेगा। अतः हम कह सकते हैं कि फ्यूचर कांट्रैक्ट से एक क्रेता तभी मुनाफा कमा पाता है जब उसे इस बात की संभावना नजर आएगी शेयर के भाव बढ़ने वाले हैं। शेयर की कीमत नीचे जाने पर विक्रेता को फायदा होता है।

ऑप्शन ट्रेडिंग क्या है (What is Option Trading in Hindi?) –

ऑप्शन ट्रेडिंग (Option Trading) के अंतर्गत साधन (assets) के धारक को पूर्व निर्धारित मूल्य पर किसी परिसंपत्ति को खरीदने या बेचने का अधिकार प्राप्त होता है। बीमा के रूप में प्रयोग किए जाने वाले ऑप्शन को सीमित समय के लिए खरीदने या बेचने के अधिकार प्रदान करके किसी निश्चित समय पर निश्चित मूल्य पर होता है। इससे वस्तु के मूल्य में उतार-चढ़ाव के जोखिम से सुरक्षा मिलती है। ऑप्शन प्रमुख रूप से दो प्रकार के होते हैं –

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