ई-कॉमर्स व्यवसाय शुरू करने के लिए पंजीकरण और लाइसेंस आवश्यक है

एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में ई-कॉमर्स बिजनेस प्रति वर्ष 40% की दर से बढ़ने वाला है। इंटरनेट की बढ़ती पहुंच के साथ, उपभोक्ताओं के बीच ऑनलाइन शॉपिंग की बढ़ती लोकप्रियता, और ऑनलाइन साइट को बनाए रखने की कम लागत, ई-कॉमर्स व्यवसाय नए उद्यमियों के लिए बहुत सारे लाभ प्राप्त कर रहा है, जो अपने व्यवसायों को ऑनलाइन खोलने के बजाय ऑनलाइन स्थापित करना चाहते हैं दुकान।

लेकिन सभी के मन में यह सवाल है कि यह यात्रा कहां और कैसे शुरू की जाए।

ठीक है, आप अपने लक्ष्य बाजार और उसमें पहले से मौजूद खिलाड़ियों के साथ खुद को परिचित करने के साथ शुरू कर सकते हैं। के बाद, आपने बाजार विश्लेषण प्रतियोगी के बाजार के साथ एक पूर्ण बाजार अनुसंधान किया है; आपके पास एक सामान्य विचार होना चाहिए कि आप अपना ई-कॉमर्स व्यवसाय कैसे शुरू करना चाहते हैं।

अगला, इन चरणों का पालन करें:

अपनी कंपनी पंजीकृत करें:

पहली बात यह है कि ऑनलाइन भुगतान स्वीकार करने के इच्छुक किसी भी ऑनलाइन व्यवसाय को एक पंजीकृत कंपनी होने की आवश्यकता है । यह आवश्यक है ताकि, वे वेबसाइट पर एक सुरक्षित भुगतान गेटवे स्थापित कर सकें। आपके व्यवसाय को पंजीकृत करने के तीन तरीके हैं:

अपने व्यवसाय को चलाने और चलाने के लिए सबसे आसान और सुविधाजनक तरीका एक एकमात्र प्रोपराइटर के रूप में पंजीकृत होना है ।

एक एकल स्वामित्व कम कानूनी अनुपालन, दस्तावेज़ीकरण की कम लागत जैसे कई लाभ प्रदान करता है, और भारतीय कानून प्रोप्राइटर के व्यवसाय और मालिक को समान पहचान (प्राइवेट लिमिटेड और सार्वजनिक कंपनियों के विपरीत) के रूप में मानता है, इससे आपको चलाने में मदद मिल सकती है। यह आपके घर से बाहर है। आप एक व्यक्तिगत दर पर कर का भुगतान करते हैं, न कि किसी कॉर्पोरेट कर दर पर। आपके लिए आवश्यक कोई अतिरिक्त लागत नहीं है, एक स्थानीय बैंक शाखा में आपकी कंपनी के नाम पर एक बैंक खाता है। आप कॉमर्स की परिस्थितियां कराधान प्रयोजनों के लिए अपने व्यक्तिगत पैन कार्ड का उपयोग कर सकते हैं। अधिकांश ई-कॉमर्स व्यवसायों के लिए, एकमात्र स्वामित्व पहले से कम टर्नओवर के कारण अपना व्यवसाय स्थापित करने का सबसे लोकप्रिय तरीका है।

रजिस्टर करने का दूसरा तरीका आपके व्यवसाय के पैमाने को ध्यान में रखते हुए प्राइवेट लिमिटेड, एक सार्वजनिक कंपनी या सीमित देयता भागीदारी (LLP) के लिए जाना जाता है । यहां पहली बात यह है कि अपने व्यवसाय के नाम पर एक चालू खाता स्थापित करें। यह आपको अपने व्यक्तिगत खाते के बजाय मुनाफे को इकट्ठा करने और अपनी कंपनी के नाम पर नुकसान का भुगतान करने का लाभ प्रदान करता है। उन्हें कई दस्तावेज और कानूनी अनुपालन की आवश्यकता होती है। लेकिन, वे बाद में व्यापार के स्केलिंग के लिए आवश्यक होते हैं, जब आपका टर्नओवर बड़ा होता है।

कर लगाना:

एकमात्र स्वामित्व के मामले में, आप कराधान प्रयोजनों के लिए अपने स्वयं के पैन कार्ड का उपयोग कर सकते हैं। आपको अपने नाम के तहत आयकर रिटर्न दाखिल करना होगा

एक एकल स्वामित्व व्यवसाय को व्यक्तिगत दरों पर चार्ज किया जाता है, इस प्रकार, कोई भी कॉर्पोरेट टैक्स नहीं देना पड़ता है।

सेवा कर केवल दी गई सेवाओं पर लागू होता है। माल की बिक्री के लिए, वैट, उत्पाद शुल्क, और बिक्री कर लागू होते हैं। इन करों का भुगतान करना अनिवार्य है, जब आपका व्यवसाय प्रति वर्ष 10 लाख का कारोबार पार करता है।

व्यवसाय लाइसेंस:

एक ऑनलाइन पोर्टल के लिए आवश्यक व्यवसाय लाइसेंस साइट पर बेचे जाने वाले उत्पादों के प्रकार पर निर्भर करता है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  1. दुकानें और स्थापना अधिनियम : यह महत्वपूर्ण है यदि आप अपने ऑनलाइन स्टोर के लिए भुगतान गेटवे चाहते हैं। इसके अलावा, यदि आप एक भौतिक दुकान स्थापित करना चाहते हैं और लोगों को नियुक्त करना अनिवार्य है।
  2. CST / VAT: ये मूल कॉमर्स की परिस्थितियां कर हैं जो आपको ऑनलाइन सामान बेचते समय चुकाने पड़ते हैं लेकिन, केवल एक बार जब आपका वार्षिक कारोबार 5 लाख को पार कर जाता है।
  3. सेवा कर: यदि आप ऑनलाइन सेवाएं दे रहे हैं तो इस कर का भुगतान करना अनिवार्य है लेकिन, केवल एक बार जब आपका वार्षिक कारोबार 10 लाख को पार कर जाता है
  4. व्यावसायिक कर: यदि आपके पास एक या एक से अधिक कर्मचारी काम करते हैं तो इस कर का पंजीकरण आवश्यक है।

करों और पंजीकरण नीतियों की स्थिति अलग-अलग होती है। इसलिए, इन पंजीकरणों के बारे में अपनी संबंधित राज्य नीति से जांच करना उचित है।

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एजुकेशन: 12वीं कॉमर्स में 5 साल के अंदर 15 हजार विद्यार्थी घट गए, साइंस और आर्ट में गांव के छात्रों की रुचि बढ़ रही

प्रतीकात्मक फोटो। - Dainik Bhaskar

(आरिफ कुरैशी) राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 12वीं काॅमर्स में पिछले पांच साल में ही करीब 15 हजार विद्यार्थी कम हो गए हैं। यह संख्या लगातार कम हाे रही है। 2016 में जहां कॉमर्स के विद्यार्थियों की संख्या 51 हजार 524 थी, 2020 में यह घटकर 36 हजार 551 ही रह गई है। इसके लिए शिक्षा विभाग की अनदेखी को भी जिम्मेदार माना जा रहा है।

कॉमर्स के प्रति विद्यार्थियों की लगातार कम हो रही रूचि को बढ़ाने के लिए जरूरी हो गया है कि रीट और सेकंड ग्रेड शिक्षक भर्ती में कॉमर्स के विद्यार्थियों के लिए अवसर जुटाए जाएं। बोर्ड की 2020 की 12वीं कक्षा के लिए साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स में इस बार कुल 8 लाख 70 हजार से अधिक विद्यार्थी पंजीकृत किए गए।

इनमें सबसे कम कॉमर्स के लिए मात्र 36 हजार 551 ही थे। साइंस में संख्या 2 लाख 39 हजार और सबसे अधिक आर्ट्स में 5 लाख 90 हजार से अधिक है। बोर्ड ने साइंस व कॉमर्स के परिणाम जारी कर दिए हैं, अब 12वीं कला वर्ग के परिणाम का इंतजार है।

कॉमर्स में ऐसे घटी संख्या
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के 12वीं कॉमर्स के बीते पांच साल के परीक्षार्थियों पर नजर डालें तो मालूम होगा कि 2016 में 51524 , 2017 में 48113, 2018 में 42665, 2019 में 41651 एवं 2020 में 36551 छात्रों ने वाणिज्य से परीक्षा दी।

हर साल घटे विद्यार्थी
2016 की तुलना में 2017 में 3411 विद्यार्थी कम हुए। कम होने वाले विद्यार्थियों की रफ्तार यहीं नहीं थमी। 2018 में यह संख्या बढ़ कर 5448 तक कम हो गई। 2019 मे 1050 और 2020 में 5100 विद्यार्थी 12वीं कॉमर्स में कम हुए। जब 12वीं कक्षा में यह हाल है तो कॉलेज एजूकेशन की स्थिति का भी सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

रोजगार के सीमित अवसर, हाशिए पर पहुंची वाणिज्य शिक्षा
राजस्थान वाणिज्य शिक्षा संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष विजय सिंह डूकिया ने कहा कि रोजगार के सीमित अवसरों के चलते प्रदेश के युवाओं में आर्थिक कौशल बढाने वाली वाणिज्य शिक्षा खुद हाशिए पर पहुंच गई है। वाणिज्य के छात्रों में लगातार कमी के बाद भी प्रदेश का शिक्षा विभाग मौन है। डूकिया ने कहा कि अगर शिक्षा विभाग की अनदेखी इसी प्रकार चलती रही तो प्रदेश में वाणिज्य शिक्षा पढ़ने वाले छात्रों के टोटे पड़ जाएंगे।

आरबीएसई स्कूल कम हो रहे हैं
सीए अंजुल जैन बताते हैं कि कॉमर्स का स्कोप कम नहीं है, सीए व सीएस के साथ ही एमबीए में भी बराबर डिमांड है, लेकिन कुछ समय से यह हो रहा है कि आरबीएसई के अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की संख्या कम हाे रही है। शहरी क्षेत्रों के स्टूडेंटस में कॉमर्स का क्रेज है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यार्थियों का रूझान विज्ञान और कला विषय की ओर अधिक है। कॉमर्स से प्रोफेशनल डिग्री की ओर से बच्चे बढ़ रहे हैं।

भारत के ई कॉमर्स व्यापार को 'आर्थिक आतंकवाद' से मुक्त करे सरकार: कैट

कैट ने भारत सरकार से मांग की है कि ई कॉमर्स व्यापार को 'आर्थिक आतंकवाद' से मुक्त करे सरकार.

Published: June 17, 2021 1:52 PM IST

भारत के ई कॉमर्स व्यापार को

कॉन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से आग्रह किया है कि विदेशी धन प्राप्त कंपनियों के आर्थिक आतंकवाद से देश के ई कॉमर्स व्यापार को मुक्त कराया जाए. उनके मुताबिक एफडीआई नीति के प्रेस नोट नंबर 2 के स्थान पर एक नया प्रेस नोट जारी कर इन ई-कॉमर्स पर लगाम कसना बेहद जरूरी है.

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कैट के अनुसार, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट और अन्य विदेशी धन प्राप्त ई-कॉमर्स कंपनियों की निरंतर अनैतिक व्यापार प्रथाओं को जारी रखने तथा एफडीआई नीति और अन्य लागू नियमों के लगातार उल्लंघन के मद्देनजर ये आग्रह किया गया है.

कैट ने कहा है, भारत कोई बिकने वाला राष्ट्र नहीं है. यह बात अमेजन एवं फ्लिपकार्ट सहित उन सभी कंपनियों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए जो देश में ई कॉमर्स और रिटेल व्यापार पर कब्जा कर अपना एकाधिकार जमाने का कुत्सित प्रयास कर रही हैं.

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा, जिस तरह से इन कंपनियों द्वारा नीति एवं नियमों का उल्लंघन कर पूरी शक्ति से ई कॉमर्स व्यापार को तबाह किया जा रहा है, उससे देश भर में हजारों दुकानें बन्द हो गई हैं. ये स्थिति किसी भी मायने में आर्थिक आतंकवाद से कम नहीं है, जिसका समूल नष्ट किया जाना बेहद जरूरी है.

इसी बीच अमेजॉन द्वारा हाल ही में दिए गए कुछ बयानों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कैट ने कहा कि, अमेजॉन एवं फ्लिपकार्ट द्वारा यह दावे करना कि उन्होंने भारत में बड़ी मात्रा में रोजगार उपलब्ध कराया है और व्यापारियों को व्यापार के बड़े अवसर प्रदान किये हैं, नितांत काल्पनिक एवं देश के ई कॉमर्स व्यापार पर कब्जा जमाने के सुनियोजित षड्यंत्र से अलावा कुछ भी नहीं है.

उन्होंने कहा, जिस तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने खुद को भारत के सच्चे दोस्त के रूप में देश के व्यापारियों के उद्धारकर्ता के रूप में प्रदर्शित किया और बाद में देश को गुलाम बना दिया गया है, लगभग उसी प्रकार के अपने नापाक इरादों पर प्रदा डालने की कोशिश है.

कैट के अनुसार, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने पाया है कि दूसरी लहर ने 1 करोड़ से अधिक भारतीयों को बेरोजगार कर दिया . मई 2021 में 12 फीसदी बेरोजगारी दर के साथ घरेलू आय में 97 फीसदी की गिरावट आई . दूसरी ओर, एक उद्योग संघ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बिजनेस कॉन्फिडेंस इंडेक्स में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है जो 51.5 फीसदी है. इससे यह साफ है की विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां वैल्यूएशन के जरिये भारतीय बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रही हैं. दूसरी ओर, इन कंपनियों की अनैतिक नीतियों से पारंपरिक भारतीय खुदरा बाजार की वित्तीय स्थिति बिगड़ रही है.

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दसवीं में कम अंक हैं तो क्या मेरे बेटे को साइंस-कॉमर्स पढ़ने का अधिकार नहीं?

अजमेर। एलकेजी से लेकर दसवीं कक्षा तक पूरे बारह साल बच्चा जिस स्कूल में पढ़ाई करे, उसी स्कूल की ग्यारहवीं कक्षा में दाखिला देने से उसे इनकार कर दिया जाए तो खुद कॉमर्स की परिस्थितियां कॉमर्स की परिस्थितियां उस विद्यार्थी के साथ-साथ उसके अभिभावकों की क्या मनोस्थिति होगी, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। ऊपर से जले पर नमक यह कि ग्यारहवीं कक्षा में किसी अन्य स्कूल द्वारा भी बच्चों को नया प्रवेश देने में टालमटोल की जाती है।


प्रदेशभर में हजारों मां-बाप जुलाई के महीने में स्कूल प्राचार्यों के कक्ष के बाहर इसलिए घंटों इंतजार करने पर मजबूर होते हैं कि उनके बच्चे को उन्हीं के स्कूल में मनचाहा विषय नहीं मिल रहा। दरअसल, यह सारी स्थिति प्राइवेट स्कूलों के बीच बोर्ड परीक्षाओं में श्रेष्ठ परिणाम दिखाने की होड़ का नतीजा है। जिसकी वजह से स्कूल संचालकों द्वारा साइंस आैर कॉमर्स में सिर्फ उन्हीं बच्चों को कॉमर्स की परिस्थितियां प्रवेश दिया जाता है जिन्होंने 80 से 90 व उससे अधिक अंक प्राप्त किए हो। राजकीय नियमों में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि किसी विषय में न्यूनतम निर्धारित अंक लाने पर ही प्रवेश दिया जाए, भले ही वह बच्चा उसी स्कूल का छात्र हो। प्रदेशभर के हजारों विद्यार्थी ग्यारहवीं कक्षा में आने के बाद इसलिए स्कूल से बेदखल हो जाते हैं क्योंकि किसी अन्य स्कूल का बच्चा सिर्फ इस आधार पर अगली कक्षा में उनकी सीट पर काबिज हो जाता कि उसने उस विषय विशेष में उनसे अधिक अंक प्राप्त किए हैं।

आरबीएसई की बारहवीं कक्षा में हर वर्ष आर्ट्स में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसकी एक बड़ी वजह ग्यारहवीं में बच्चों को मनमाफिक विषयों का नहीं मिलना भी है। इस वर्ष आर्ट्स में जहां 5 लाख 61 हजार 407 विद्यार्थी बोर्ड परीक्षा में बैठे, वहीं साइंस में 1 लाख 88 हजार 99 आैर कॉमर्स में महज 60 हजार 797 विद्यार्थी ही परीक्षा में शामिल हुए।


मनमर्जी के नियम
स्कूलों ने अपनी मनमर्जी से तय कर रखा है कि दसवीं के बाद कितने प्रतिशत अंकों पर कौनसा विषय देना है। कहीं 60 फीसदी पर साइंस दी जा रही है तो कहीं 55 प्रतिशत पर कॉमर्स भी नहीं। सभी स्कूलों के अपने नियम-कायदे हैं, जबकि ऐसा कोई राजकीय नियम नहीं है।

शिक्षा राज्यमंत्री से सवाल-जवाब
क्या विद्यार्थियों को अपनी पसंद के विषय पढ़ने का अधिकार है या नहीं?
- हां, हर विद्यार्थी को अपनी पसंद के विषय पढ़ने का पूरा अधिकार है। विषय चयन करने की आजादी है। उन्हें इससे रोका नहीं जा सकता।
दसवीं में कम अंक आने पर विद्यार्थी को उनकी पसंद के विषय नहीं देने में निजी स्कूलों की मनमानी पर आप क्या कहेंगे?


- दसवीं की मेरिट के अनुरूप ग्यारहवीं में विषय दिए जाते हैं। यदि योग्य होते हुए भी कोई स्कूल दाखिला नहीं दे रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
क्या किसी विद्यार्थी को उसकी रुचि के विषय नहीं पढ़ाना मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है?
-नहीं, यह विद्यार्थी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है। यदि कम प्रतिशत हैं तो उसके पास दुबारा परीक्षा देकर अच्छे प्रतिशत बनाने के अवसर हैं।

नौवीं कक्षा से करें काउंसिलिंग
एक आदर्श स्कूल तो वह कहलाएगा जिसमें विद्यार्थियों को उससे रुचि के विषय पढ़ाकर तराशा जाए। स्कूल में नौवीं कक्षा से ही विद्यार्थी की क्षमताएं व योग्यता जानने के लिए काउंसिलिंग हो। वोकेशनल व एजुकेशनल गाइडेंस दी जाए। विद्यार्थी का एप्टीट्यूट आैर साइक्लोजिकल टेस्ट लेकर यह पता लगाया जाए कि उसकी रुचि किस विषय को पढ़ने में है।


जिसमें रुचि हो वह विषय ही पढ़ें विद्यार्थी
शिक्षक ने कह दिया वो रामबाण नहीं है। स्कूल आैर अभिभावकों को बच्चे की क्षमताएं पहचानने के बाद 11वीं में विषयों का चयन करवाना चाहिए। प्रॉपर काउंसिलिंग की जानी चाहिए। स्कूलों को इस पर ज्यादा ध्यान देना होगा। विद्यार्थी भी ध्यान रखें कि अपने दोस्तों को देख विषय का चयन नहीं करें, बल्कि जिसमें रुचि हो वो विषय पढ़ें।

L&T ने MSMEs ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सूफिन लॉन्च किया

L&T ने MSMEs ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सूफिन लॉन्च किया |_40.1

लार्सन एंड टुब्रो (Larsen & Toubro – L&T) ने एलएंडटी-सूफिन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म (L&T-SuFin e-commerce platform) की स्थापना की है। यह अन्य व्यवसायों को बेचे जाने वाले औद्योगिक उत्पादों और सेवाओं के लिए देश का पहला पूर्ण ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है। मंच की लेनदेन लागत लगभग 1.5 प्रतिशत है। अपने बी 2 बी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से, कंपनी का उद्देश्य व्यवसायों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को सशक्त बनाना है, जिससे उन्हें पूरे भारत में औद्योगिक वस्तुओं को डिजिटल और लागत प्रभावी ढंग से प्राप्त करने की अनुमति मिल सके।

कंपनी ने एक बयान में कहा, “डिजिटल प्रौद्योगिकी के साथ, एलएंडटी सूफिन भारतीय व्यापार परिदृश्य को बदलने के लिए तैनात है, जिसके परिणामस्वरूप पारंपरिक आपूर्ति श्रृंखलाओं को औपचारिक रूप दिया गया है और आपूर्तिकर्ताओं और खरीदारों के लिए जीत की स्थिति है।”

प्रमुख बिंदु:

  • मंच पर सभी प्रकार के निर्माण और औद्योगिक उत्पाद उपलब्ध होंगे। साथ ही, एलएंडटी के बिजनेस हेड भद्रेश पाठक के अनुसार, देश भर में एमएसएमई को औद्योगिक वस्तुओं को बेचने के प्रयास में रसद और वित्त की सहायता की जाएगी।
  • एलएंडटी सूफिन की शुरुआत के साथ, हम अपने डिजिटल परिवर्तन पथ में एक और कदम आगे बढ़ाते हैं, जो हमारे विश्वास और पारिस्थितिकी तंत्र ज्ञान की विरासत पर आधारित है। हमें एलएंडटी सूफिन की औद्योगिक बी2बी क्षेत्र को बदलने की क्षमता पर भरोसा है”, एसएन सुब्रह्मण्यन एलएंडटी के सीईओ और प्रबंध निदेशक हैं।
  • एलएंडटी में कॉरपोरेट स्ट्रैटेजी हेड अनूप सहाय के अनुसार, लार्सन एंड टुब्रो आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने और खरीदारों और आपूर्तिकर्ताओं के लिए बेहतर प्रक्रियाओं का निर्माण करने के लिए सूफिन प्लेटफॉर्म का उपयोग करेगी।
  • इससे औद्योगिक उत्पाद की उपलब्धता सभी के लिए सरल और स्पष्ट हो जाएगी। एलएंडटी सूफिन 40 से अधिक श्रेणियों में औद्योगिक वस्तुओं का विस्तृत चयन प्रदान करता है, साथ ही वित्तीय और रसद सहायता भी प्रदान करता है।

एलएंडटी सूफिन ने विक्रेताओं को अपने बाजारों का विस्तार करने का अवसर दिया। व्यापार के अनुसार, मंच को पूरे भारत में और श्रेणियों में खरीदारों को जोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

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