भोपाल। अब कोई भी पान की दुकान पर खड़े होकर प्रॉपर्टी ब्रोकिंग या डीलिंग का धंधा नहीं कर पाएगा। इसके लिए अब बाकायदा लाइसेंस लेना होगा। रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरटी (रेरा) के एक मई से लागू हो जाने के बाद प्रॉपर्टी ब्रोकर्स पर शिकंजा कसेगा। ब्रोकर्स को रेरा में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इससे पहले प्रॉपर्टी ब्रोकरों की भूमिका प्रॉपर्टी के खरीदार और बेचने वाले के बीच मीटिंग की व्यवस्था करने और सौदे को अंतिम रूप देकर अपनी सेवा के बदले कमीशन लेने तक रहती थी।

अपने डीमैट अकाउंट को फ्रॉड से कैसे बचाएं?

सेबी के दिशानिर्देशों ने निवेशक के खाते में पड़े पैसों के दुरुपयोग की आशंका को कम किया है.

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इस घटना ने डीमैट खातों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए. निवेशकों के लिए क्या रास्ता है अगर डीमैट में रखे शेयर या म्यूचुअल फंड यूनिट ट्रांसफर कर दिए जाए? क्या ट्रांसफर की गई यूनिटों को ट्रेस किया जा सकता है? इस तरह के फ्रॉड से बचने के लिए क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं?

आज पहले के मुकाबले फ्रॉड की गुंजाइश काफी कम है. सेबी ने इसके लिए काफी इंतजाम किए हैं. उसने पावर ऑफ अटॉर्नी (PoA) एग्रीमेंट की ड्राफ्टिंग के नियमों को कई मानकों पर कस दिया है. इसके ब्रोकर के पीछे क्या है? तहत सेटेलमेंट के मकसद से प्रतिभूतियों और फंडों को ट्रांसफर करने के ब्रोकर के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं. ब्रोकर बिना लिखित अनुमति के क्लाइंट के नाम से ट्रेडिंग नहीं कर सकते हैं.

जेरोधा के संस्थापक नितिन कामथ कहते हैं कि सेबी के दिशानिर्देशों ने निवेशक के खाते में पड़े पैसों के दुरुपयोग की आशंका को कम किया है. उदाहरण के लिए पहले संभव था कि शेयरों की खरीद के बाद उन्हें क्लाइंट के खातों में न ट्रांसफर किया जाए. उन्हें एक पूल बनाकर जुटाया जा सकता था. इसका इस्तेमाल किसी अन्य ग्राहक की मार्जिन जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता था.

इलेक्ट्रॉनिक डीमैट सिस्टम में ऑडिट ट्रेल पीछे छोड़े बगैर खरीद-फरोख्त करना असंभव है. इस तरह अगर शेयर या यूनिटों को अवैध तरीके से ट्रांसफर कर भी दिया जाए तो भी उन्हें ट्रैक किया जा सकता है.

सिलायंस सिक्योरिटीज में ईडी व सीआईओ बी गोपकुमार कहते हैं, "फ्रॉड को रोकने के लिए काफी उपाय कर दिए गए हैं." सैमको सिक्योरिटीज के सीईओ जिमित मोदी कहते हैं, "धोखाधड़ी के अलावा ब्रोकर के पास थर्ड पार्टी अकाउंट में प्रतिभूतियां ट्रांसफर करने का कोई विकल्प नहीं है."

डालमिया भारत मामले में ब्रोकर ने यूनिटें ट्रांसफर करने के लिए धोखे से कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षर बनाए थे. सुरक्षा उपायों के बाद भी निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है. जालसाज ब्रोकर सिस्टम में खामी खोजते रहते हैं.

फ्रॉड से कैसे बचें
-सुनिश्चित करें कि डिपॉजिटरी के साथ मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी अपडेट हो.
-डीमैट खाते में हर एक ट्रांजेक्शन के बाद डिपॉजिटरी की ओर से भेजे गए एसएमएस और ईमेल स्टेटमेंट चेक करें.
-हर महीने ब्रोकर की ओर से जारी किए जाने वाले होल्डिंग स्टेटमेंट को जांचें.
-ब्रोकर अगर फ्रॉड करता है तो उस स्थिति में डिपॉजिटरी को समय से शिकायत करें.
-ब्रोकिंग अकाउंट में अतिरिक्त पैसा रखने से बचें. सेविंग अकाउंट से केवल खरीद के समय ही पैसा ट्रांसफर करें.
-ऑफलाइन ट्रेड के लिए ब्रोकर के पास हस्ताक्षर की हुई डिलीवरी इंस्ट्रक्शन स्लिप न रखें.

सतर्क रहने की जिम्मेदारी निवेशक की है. उसे शेयरों और म्यूचुअल फंड यूनिटों पर लगातार नजर रखनी चाहिए. ब्रोकर और डिपॉजिटरी (CDSL या NSDL) दोनों डीमैट खाते में सभी ट्रांजेक्शन के एसएमएस अलर्ट या ईमेल भेजते हैं. हर ट्रांजेक्शन के ब्योरे को देख लेना महत्वपूर्ण है.

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भारी पड़ी लापरवाही! बस एक क्लिक से स्‍वाहा हो गए ब्रोकर के 250 करोड़ रुपये, देश में अब तक का सबसे बड़ा मामला

साल 2012 में भी ऐसे ही एक मामले में 60 करोड़ का नुकसान हुआ था.

साल 2012 में भी ऐसे ही एक मामले में 60 करोड़ का नुकसान ब्रोकर के पीछे क्या है? हुआ था.

नई दिल्‍ली. कभी-कभी जरा सी चूक कितनी भारी पड़ सकती है, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. ऐसी ही एक घटना बृहस्‍पतिवार को NSE पर ट्रेडिंग के दौरान सामने आई, जब ब्रोकर के एक गलत क्लिक से ही करीब 250 करोड़ रुपये का नुकसान हो गया.

टाइम्‍स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, ब्रोकरेज की ब्रोकर के पीछे क्या है? भाषा में इसे फैट फिंगर ट्रेडिंग कहते हैं, जहां कोई ब्रोकर ऑर्डर प्‍लेस करते समय गलती से की-बोर्ड का ऐसा बटन दबा देता है जो उसके पूरे सौदे को तबाह कर देता है. भारत में यह अब तक का सबसे बड़ा मामला है. अनुमान है कि इसमें ब्रोकर को 200-250 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इससे पहले साल 2012 में ब्रोकरेज हाउस एमके ग्‍लोबल को भी इसी तरह के एक मामले में 60 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा था.

कब और कैसे हुई यह चूक
बृहस्‍पतिवार दोपहर 2.37 से 2.39 बजे के बीच निफ्टी पर ऑप्‍शन ट्रेडिंग के समय एक ब्रोकर ने 25 हजार लॉट के लिए बोलियां लगाईं. इस समय प्रत्‍येक लॉट का बाजार भाव करीब 2,100 रुपये था, लेकिन ब्रोकर ने गलती से काफी कम का भाव लगा दिया. बाजार के जानकारों का कहना है कि ऑर्डर प्‍लेस होते ही ब्रोकर को 200-250 करोड़ रुपये की चपत लग गई. कुछ बाजार विश्‍लेषकों का दावा है कि यह रकम किसी भी हाल में 250 करोड़ से कम नहीं है.

एक तरफ ऑर्डर प्‍लेस करने वाले ब्रोकर को इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा तो दूसरी ओर इसी घटना ने कोलकाता के दो ब्रोकर को करोड़ों का फायदा पहुंचाया. बाजार विश्‍लेषकों के मुताबिक, एक ब्रोकर को करीब 50 करोड़ का सीधा लाभ हुआ है, जबकि दूसरे को 25 करोड़ मिले हैं.

बीमा से होगी भरपाई
इस घटना के बारे में वैसे तो एनएसई की ओर से ऑफिशियली कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन एक अधिकारी ने बताया कि चूंकि यह मामला दो ब्रोकर के बीच हुआ है ब्रोकर के पीछे क्या है? और गलती से एक को नुकसान उठाना पड़ा तो इसकी भरपाई पहले से कराए बीमा के जरिये हो जाएगी. हालांकि, एक्‍सचेंज इस बात की जांच कर रहा है कि इस तरह की गलत ट्रेडिंग का ऑर्डर तकनीकी पकड़ से बचकर कैसे पूरा हो गया.

दरअसल, साल 2012 में जब पहली बार फैट फिंगर ट्रेडिंग का मामला सामने आया था तो सभी ब्रोकरेज हाउस ने ऐसी तकनीक विकसित की थी जिसमें ऐसे गलत ट्रेड के ऑर्डर को पहचान कर स्‍वयं नष्‍ट कर दिया जाता था. एनएसई ने भी ऐसी तकनीक विकसित की थी जिसमें मार्केट प्राइस से कम पर कोई ऑर्डर होने पर उसकी पहचान कर ली जाती. लेकिन, इस मामले में एनएसई की यह तकनीक भी काम नहीं आई.

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शेयर मार्केट क्रैश क्‍या है? ऐसी गलतियां जिनसे शेयर मार्केट क्रैश के दौरान बचना चाहिए।

शेयर मार्केट क्रैश क्‍या है? ऐसी गलतियां जिनसे शेयर मार्केट क्रैश के दौरान बचना चाहिए।

  • Date : 25/07/2022
  • Read: 3 mins Rating : -->
  • Read in English: What is a stock market crash? Mistakes to avoid during stock market crash.

जब एक अप्रत्याशित घटना एक ऐसे मार्केट पर स्‍ट्राइक करती है जो अपने ओवरवैल्‍यूड स्‍टेज पर पहुंच गया है, तो क्रैश होता हैं। आप इन सुझावों का उपयोग क्रैश के दौरान घबराहट में बेचने के बजाय गलतियों को रोकने के लिए कर सकते हैं।

शेयर मार्केट क्रैश क्‍या है

मार्केट क्रैश क्‍या है और यह क्‍यों होता है?

फाइनेंशियल क्रैश स्‍टॉक की कीमतों में अचानक और आमतौर पर अप्रत्याशित गिरावट होती है। एक लंबा फाइनेंशियल बबल फटना या आर्थिक संकट दोनों के ही परिणामस्‍वरूप स्‍टॉक मार्केट क्रैश हो सकता है। यहां तक कि अगर कोई निर्धारित मानदंड नहीं है, फिर भी स्टॉक मार्केट क्रैश को आमतौर पर कुछ दिनों में स्टॉक इंडेक्स में नाटकीय रूप से डबल डिजिट की कमी के रूप में माना जाता है। स्टॉक मार्केट क्रैश से अक्सर अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित होती है। मार्केट क्रैश के दौरान निवेशकों के द्वारा पैसा खोने के कुछ सबसे प्रचलित कारणों में कीमतों में तेज गिरावट के तुरंत बाद शेयर्स की बिक्री और मार्जिन पर अत्यधिक संख्या में इक्विटी खरीदना शामिल है।

मार्केट क्रैश के पीछे के कारणों को जानने के लिए वीडियो देखें:

मार्केट क्रैश के इन समय के दौरान गलतियां करने से बचने के लिए निवेशक क्‍या कर सकते हैं?

  • निवेशक मार्केट के गिरने के दौरान अक्‍सर स्‍टॉप लॉस लगाने को नज़रअंदाज़ करते हैं, जो एक मूलभूत गलती है। सीधे शब्दों में कहें तो, स्टॉप-लॉस ट्रेड एक विशेष कीमत तक पहुंचने पर स्‍टॉक को खरीदने या बेचने के लिए एक ब्रोकर से अनुरोध करना है। जोखिम और अंतिम नुकसान को कम करने के लिए मार्केट में सुधार के दौरान स्टॉप-लॉस ऑर्डर रखना महत्वपूर्ण होता है।
  • अस्थिर स्टॉक्‍स से जोखिम वाले मुनाफे को पाने के पक्ष ब्रोकर के पीछे क्या है? में सुरक्षित स्टॉक होल्डिंग्स को बेचना, बाजार में गिरावट के दौरान निवेशकों द्वारा की जाने वाली एक सामान्य गलती है।
  • जोखिम भरे स्‍टॉक्‍स में निवेश करना एक और आम गलती है जो कंपनियां मार्केट में गिरावट के दौरान तय करती हैं। जोखिम में लाभ शामिल होता है, लेकिन अपने बहुत अधिक पैसे को जोखिम भरी इक्विटी में इस उम्मीद में लगाना कि उनमें फिर से उछाल आएगा, यह एक अच्छी निवेश रणनीति नहीं है ।
  • हालांकि बियर (नीचे जाता हुआ) मार्केट के कारण निस्संदेह थोड़ी चिंता हो सकती है, निश्चित समय के दौरान घबराहट की बिक्री को रोकने के लिए निवेश से भावनाओं को दूर करना महत्वपूर्ण है।

निष्‍कर्ष:

इस साल भारतीय मार्केट में काफी गिरावट आई है जबकि अंतर्राष्‍ट्रीय मार्केट बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। निवेशकों के लिए अभी भी लाभ कमाने के तरीके हैं, लेकिन कई लोगों ने इस उम्मीद में लो-क्‍वालिटी वाले इक्विटी को रखने की गलती की है कि बाजार में बदलाव के बाद उनकी वैल्‍यू बढ़ेगी। कुछ खरीदार जो बाजार में सुधार का लाभ उठाना चाहते हैं, वे लो क्‍वालिटी वाली इक्विटी भी खरीदते हैं जिनकी कीमत में काफी गिरावट आई है। इन्हें देखें और हर स्थिति का सबसे अच्‍छा लाभ उठाने के लिए मूलभूत गलतियां करने से ब्रोकर के पीछे क्या है? बचें।

मार्केट क्रैश क्‍या है और यह क्‍यों होता है?

फाइनेंशियल क्रैश स्‍टॉक की कीमतों में अचानक और आमतौर पर अप्रत्याशित गिरावट होती है। एक लंबा फाइनेंशियल बबल फटना या आर्थिक संकट दोनों के ही परिणामस्‍वरूप स्‍टॉक मार्केट क्रैश हो सकता है। यहां तक कि अगर कोई निर्धारित मानदंड नहीं है, फिर भी स्टॉक मार्केट क्रैश को आमतौर पर कुछ दिनों में स्टॉक इंडेक्स में नाटकीय रूप से डबल डिजिट की कमी के रूप में माना जाता है। स्टॉक मार्केट क्रैश से अक्सर अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित होती है। मार्केट क्रैश के दौरान निवेशकों के द्वारा पैसा खोने के कुछ सबसे प्रचलित कारणों में कीमतों में तेज गिरावट के तुरंत बाद शेयर्स की बिक्री और मार्जिन पर अत्यधिक संख्या में इक्विटी खरीदना शामिल है।

मार्केट क्रैश के पीछे के कारणों को जानने के लिए वीडियो देखें:

मार्केट क्रैश के इन समय के दौरान गलतियां करने से बचने के लिए निवेशक क्‍या कर सकते हैं?

  • निवेशक मार्केट के गिरने के दौरान अक्‍सर स्‍टॉप लॉस लगाने को नज़रअंदाज़ करते हैं, जो एक मूलभूत गलती है। सीधे शब्दों में कहें तो, स्टॉप-लॉस ट्रेड एक विशेष कीमत तक पहुंचने पर स्‍टॉक को खरीदने या बेचने के लिए एक ब्रोकर से अनुरोध करना है। जोखिम और अंतिम नुकसान को कम ब्रोकर के पीछे क्या है? करने के लिए मार्केट में सुधार के दौरान स्टॉप-लॉस ऑर्डर रखना महत्वपूर्ण होता है।
  • अस्थिर स्टॉक्‍स से जोखिम वाले मुनाफे को पाने के पक्ष में सुरक्षित स्टॉक होल्डिंग्स को बेचना, बाजार में गिरावट के दौरान निवेशकों द्वारा की जाने वाली एक सामान्य गलती है।
  • जोखिम भरे स्‍टॉक्‍स में निवेश करना एक और आम गलती है जो कंपनियां मार्केट में गिरावट के दौरान तय करती हैं। जोखिम में लाभ शामिल होता है, लेकिन अपने बहुत अधिक पैसे को जोखिम भरी इक्विटी में इस उम्मीद में लगाना कि उनमें फिर से उछाल आएगा, यह एक अच्छी निवेश रणनीति नहीं है ।
  • हालांकि बियर (नीचे जाता हुआ) मार्केट के कारण निस्संदेह थोड़ी चिंता हो सकती है, निश्चित समय के दौरान घबराहट की बिक्री को रोकने के लिए निवेश से भावनाओं को दूर करना महत्वपूर्ण है।

निष्‍कर्ष:

इस साल भारतीय मार्केट में काफी गिरावट आई है जबकि अंतर्राष्‍ट्रीय मार्केट बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। निवेशकों के लिए अभी भी लाभ कमाने के तरीके हैं, लेकिन कई लोगों ने इस उम्मीद में लो-क्‍वालिटी वाले इक्विटी को रखने की गलती की है कि बाजार में बदलाव के बाद उनकी वैल्‍यू बढ़ेगी। कुछ खरीदार जो बाजार में सुधार का लाभ उठाना चाहते हैं, वे लो क्‍वालिटी वाली इक्विटी भी खरीदते हैं जिनकी कीमत में काफी गिरावट आई है। इन्हें देखें और हर स्थिति का सबसे अच्‍छा लाभ उठाने के लिए मूलभूत गलतियां करने से बचें।

प्रॉपर्टी की गुड डील के लिए ब्रोकर के पीछे क्या है? चुनें सही ब्रोकर

एक दुकानदार ने प्रॉपर्टी डीलिंग के मुनाफे को देखते हुए प्रॉपर्टी डीलर का ही काम शुरू कर दिया.

किसी भी खरीदार के लिए एक गुड डील के लिए अच्छा प्रॉपर्टी ब्रोकर मिला मुश्किल काम है। वहीं उन ब्रोकर्स से बच कर रहें जिनमें प्रफेशनलिज्म और ट्रांसपेरेसी की कमी होती है। इनमें चाय की दुकान या छोटी मोटी दुकान टाइप वाले लोग हो सकते हैं।

ऐसा ब्रोकर जो जगह की क्लिअर पिक्चर न बताए और उसके बारे में बढ़-चढ़कर बोले उसकी बातों की क्रॉस चेकिंग जरूर कर लें। एक प्रत्याशित बायर नीरज संधु का कहना है कि कई बार ब्रोकर बहुत ही अवास्तविक पिक्चर बताते हैं जैसे आपसे कहेंगे कि 'सोहना रोड तो सोना है', 'सर जी उसके सामने गोल्फ कोर्स रोड चांदी ही चांदी है' वगैरह वगैरह. इस तहर की बातों में आने से पहले आपको हकीकत जानना बहुत जरूरी है।

आपको ब्रॉकर से बारीक से बारीक चीजों के बारे में जानना होगा। जैसे हो सकता है कि किसी अपार्टमेंट के पीछे गारबेज हो सा सलम एरिया हो। इन सब बातों को काफी ध्यान से परख लें। अधिकतर एक बार डील होने और अपना कमिशन मिलने के बाद ब्रोकर आपकी तरफ अट्रैक्शन नहीं देंगे।

वहीं ब्रोकर ऐसा होना चाहिए जो आपको महज उस लोकेलिटी ब्रोकर के पीछे क्या है? के बारे में ही न बताए जहां आप प्रॉपर्टी ले रहे हैं बल्कि उसके आसपास के एरिया के बारे में भी बताए।

अब रियल एस्टेट ब्रॉकिंग न सिर्फ प्रॉपर्टी सेल करना रह गया है बल्कि इसके आगे ये प्रॉपर्टी लॉ, लोन, टैक्सेशन, इनवेस्टमेंट के बारे में जिक्र करता है। इंडिया के ईस्टर्न पार्ट में हाई वैल्यू ट्रांजेक्शन डील करने वाले संदीप सेन इस प्रॉफेशन की क्वालिफिकेशन के बारे में कहते हैं कि इसके लिए सिविल इंजीनियरिंग के साथ मैनेजमेंट ट्रेनिंग भी होनी चाहिए।

ब्रोकर के ऑफिस का साइज भी मैटर करता है वहां, फोन, फैक्स, ईमेल और दूसरी सुविधाएं हैं या नहीं। वहां स्टाफ कितना है। अगर उसने एक प्रॉपर ऑफिस बनाया है तो ये जाहिर करता है कि वह लॉन्ग टर्म इस बिजनेस में टिकेगा और अपने कमिटमेंट को वह पूरा करेगा। अगर उसके ऑफिस का लोकेशन प्राइम कमर्शल हब में है तो ये बहुत ही अच्छा होगा। इससे पता चलता है कि वह फाइनैंशियली स्ट्रॉन्ग है। अगर उसके ऑफिस की एक से ज्यादा ब्रान्च हों तो और अच्छा रहेगा।

एक अहम पॉइंट ये भी है कि वह कब से ये प्रैक्टिस कर रहा है। एक्सपीरियंस बहुत ही अच्छा इंडिकेटर है। एक अच्छा ब्रोकर वही है जो आपको डील को अच्छा बनाने में हर छोटी से बड़ी बात आपको बताए। आपकी पूरी तरह हेल्प करे।

उसे आपको लीगल जानकारी भी मुहैया करानी चाहिए। साथ ही उसके पार्टनर्स के बारे में भी आपको पूरी जानकारी होनी चाहिए।

आप उससे मैंटिनेंस चार्ज के बारे में भी बात कर सकते हैं। वाटर सिचुएशन, पार्किंग फैसिलिटी, स्टांप ड्यूटी रेट्स, कैपिटल गेन इशू, रजिस्ट्रेशन चार्ज, कंस्ट्रक्शन तकनीक और दूसरी चीजों के बारे में भी पूछ सकते हैं।

एक गुड ब्रोकर को मार्केट प्राइस के वैरीएशन्स के बारे में पता होना चाहिए। साथ ही बिल्डर्स की रेप्युटेशन की जानकारी उसके पास हो। ऐसे में वो आपको उन बिल्डर्स के बारे में गाइड कर सकता है जिनका परफॉर्मेंस अच्छा नहीं है या जो डिलिवरी में बहुत डिले करते हैं।

इंदिरापुरम स्थित रियलिटी फर्म के सुरिंदर मोहन का कहना है कि उसी ब्रोकर के पास आपको जाना चाहिए जिसके पास आईएसओ 9001 : 2000 का सर्टिफिकेट हो। प्राइवेट और लिमिटेड कंपनी ही बैटर है।

ये भी पता कर लें कि क्या वो किसी लोकल या नैशनल लेवल की रियल एस्टेट असोसिएशन से जुड़ा है। क्या वो सर्विस टैक्स पे करता है। सर्विस टैक्स रजिस्ट्रेशन ये शो करता है कि उसका बिजनेस गंभीरता से चल रहा है।
नम्रता कोहली

MP में बिना लाइसेंस वाले प्रॉपर्टी ब्रोकर्स के खिलाफ होगी कार्रवाई, यहां शिकायत करें | PROPERTY BROKERS

भोपाल। अब कोई भी पान की दुकान पर खड़े होकर प्रॉपर्टी ब्रोकिंग या डीलिंग का धंधा नहीं कर पाएगा। इसके लिए अब बाकायदा लाइसेंस लेना होगा। रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरटी (रेरा) के एक मई से लागू हो जाने के बाद प्रॉपर्टी ब्रोकर्स पर शिकंजा कसेगा। ब्रोकर्स को रेरा में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इससे पहले प्रॉपर्टी ब्रोकरों की भूमिका ब्रोकर के पीछे क्या है? प्रॉपर्टी के खरीदार और बेचने वाले के बीच मीटिंग की व्यवस्था करने और सौदे को अंतिम रूप देकर अपनी सेवा के बदले कमीशन लेने तक रहती थी।

रेरा के तहत प्रॉपर्टी ब्रोकर्स के लिए रजिस्ट्रेशन की फीस तय कर दी गई है। व्यक्तिगत तौर पर प्रॉपर्टी ब्रोकिंग का काम करने वाले को 10 हजार रुपए फीस देना होगी और प्रॉपर्टी ब्रोकिंग फर्म को 50 हजार रुपए फीस निर्धारित की गई है। ये फीस देकर रजिस्ट्रेशन के बाद ही ब्रोकर प्रॉपर्टी की खरीदी-बिक्री का बिजनेस कर पाएंगे।

राजधानी में रियल एस्टेट में प्रॉपर्टी ब्रोकर के तौर पर काम करने वाले प्रॉपर्टी ब्रोकर्स का कहना है कि पांच साल पहले तक प्रॉपर्टी ब्रोकिंग का कारोबार अच्छा था लेकिन अब इसमें मंदी आ गई है। बड़े बिल्डर्स और बड़े ब्रोकर्स के आ जाने से छोटे प्रॉपर्टी ब्रोकर्स का काम लगभग खत्म सा हो चला है। हालत यह है कि पिछले पांच वर्षों में ब्रोकर्स के धंधे में 50 फीसदी कमी आ गई है। बड़ी प्रॉपर्टी के खरीदार कम हो गए हैं, इसलिए रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट नहीं मिल पा रहा है।

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