देशवासियों की आय में अस्थिरता बनी वृद्धि की नई समस्या
अर्थव्यवस्था में रिकवरी का दौर शुरू होने के साथ ही सरकार को स्थिर मध्यम अवधि की निवेश एवं उपभोग नीति पर चलने का फैसला करना पड़ा है। अभी तक उसकी प्राथमिकता उत्पादन में नई जान फूंकने पर ही रही है। उस रवैये की मियाद अब पूरी हो चुकी है। नए निवेश के तरीके को छोड़कर करने के लिए बहुत कुछ बचा भी नहीं है।
लेकिन उत्पादन एवं निवेश के साथ उपभोग को भी पुराने स्तर पर ले जाने की जरूरत है। यह काम कहीं अधिक मुश्किल है और अनुमानित आधार या प्रारूप के अभाव में ऐसा करना कहीं अधिक मुश्किल है।
इस समय हमारे पास कीन्सवाद की महज वह सोच रह गई है कि 'उन्हें पैसे कमाने दो'। लेकिन यह 'सुस्त बैंकिंग' के समकक्ष है। इस संदर्भ में काफी समय पहले भुलाए जा चुके एक सिद्धांत की तरफ मैं ध्यान दिलाता हूं। कुछ समय पहले आईडीएफसी इंस्टीट्यूट के शोध निदेशक निरंजन राज्याध्यक्ष ने एक छात्र के ट्वीट की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया था। उस ट्वीट में मिल्टन फ्राइडमैन की 'स्थायी आय परिकल्पना' का जिक्र किया गया था जिसका प्रतिपादन 1950 के दशक में किया गया था। यह परिकल्पना इस बारे में है कि लोग अपने उपभोग के बारे में फैसला करते समय पूरी जिंदगी में होने वाली अपनी कमाई का अनुमान लगाते हैं और फिर उसके हिसाब से अपने उपभोग को समायोजित करते हैं। इस तरह सस्ते कर्ज, कर कटौती एवं तय समय से पहले होने वाली पदोन्नति जैसे आय में कृत्रिम उछाल लाने वाले साधनों का सिर्फ अस्थायी असर ही होगा। अधिक स्थायी एवं दूरगामी असर के लिए आपको पूरे जीवन में आय की संभावनाओं पर गौर करना होता है। यह भविष्य की नीति के लिए अहम अंतर्दृष्टि है।
मैंने भारत में खपत के नए समाजशास्त्र के बारे में पिछले सितंबर में एक लेख लिखा था। मेरी संकल्पना यह थी कि शहरीकरण ने एक संयुक्त परिवार और पूरी तरह एकांगी परिवार के बीच एक हाइब्रिड परिवार को जन्म दिया है। इसका अंतिम परिणाम यह है कि जहां परिवार के एक या अधिकतम दो सदस्य ही कमा रहे हैं, वहीं कमाने वाले कई दूसरे लोगों पर लगने वाली लागत अब केवल एक या दो अर्जकों तक ही केंद्रित हो चुकी है। सिर्फ यही नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार एवं मनोरंजन के लोचरहित मदों में भारी वृद्धि भी देखी गई है। इससे बचत एवं निवेश से जुड़े उत्पाद बचत एवं खर्च दोनों में गिरावट का नया पैटर्न सामने आया है।
मेरी नजर में 2020 के बाद की दुनिया में इसे नई महत्ता मिली है। इसकी वजह यह है कि औपचारिक अर्थव्यवस्था में नौकरियों से होने वाली आय का अनुपात अब परामर्श जैसे नौकरी से इतर कार्यों से होने वाली आय की तुलना में धीरे-धीरे कम हो जाएगा। अमेरिकी विद्वान इसे 'गिग इकॉनमी' कहते हैं जिसमें 80-90 फीसदी आय नौकरियों के जरिये नहीं बल्कि शुल्कों से होती है।
श्रम बाजार में मौजूद प्रतिस्पद्र्धा स्तर को देखते हुए यह बदलाव आय पर नीचे की ओर जाने वाला दबाव डालता है। हम वर्ष 2011 से ही ऐसा होते हुए देख रहे हैं। मेरी सीमित समझ में यह पहलू सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में गिरावट की व्याख्या सही ढंग से करता है।
जरा इस पर सोचिए। अगर आपके परिवार की आय स्थिर नहीं है और परामर्श एवं सेवा शुल्कों पर ही निर्भर करती है तो फिर आप अपनी जिंदगी भर की कमाई के बारे में किस तरह कोई अनुमान लगा सकते हैं?
यह सवाल जितना अटपटा लगता है, उतना है नहीं। असल में, यह अनौपचारिक क्षेत्र में एक चलन बन चुका है। इस तरह भारत के बचत एवं निवेश से जुड़े उत्पाद 60 करोड़ कमाने वालों में से 55 करोड़ लोगों के पास कोई स्थिर मासिक आय ही नहीं होती है। हां, वे भी कमाते हैं लेकिन वह आय रुक-रुक कर होती है।
डॉक्टर, आर्किटेक्ट, खिलाड़ी एवं अन्य पेशेवरों जैसे अत्यधिक कुशल लोग बहुत कमाते हैं। लेकिन छोटे दुकानदारों जैसे बहुतेरे लोग बहुत कम कमाते हैं। और सिर्फ यही नहीं है। उनकी कतार में रोजाना ऐसे लोग भी जुड़ते रहते हैं जिनकी आय सिकुड़ चुकी है। इस तरह हम कम आय के साथ बेहद अस्थिर जाल में फंस चुके हैं। इस तरह हम श्रम बाजार के मामले में फिर से दूसरे विश्व युद्ध से पहले के दौर में पहुंच चुके हैं।
दूसरे शब्दों में, उपभोग समस्या आय में काफी अस्थिरता होने से जुड़ी हुई है। यह कुल आय या इसके वितरण का एक हिस्सा भर नहीं है। यह अस्थिरता का एक अंग है। यह ऐसा बड़ा बदलाव है जो कोरोनावायरस और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी नई तकनीकें लेकर आई हैं और अगले पांच वर्षों में और भी तमाम बदलाव लेकर आएंगी। यह ऐसी समस्या है जिससे नीति को निपटना है। आय के इतना अस्थिर रहते समय खपत आखिर किस तरह बढ़ाई जा सकती है? इससे कहीं अधिक बुनियादी सवाल खड़ा होता है कि क्या अस्थिरता को पूरी तरह खत्म या भोथरा कर पाना संभव है? भारत के सियासी तबके ने निम्न-उत्पादकता वाली नौकरियों का सबसे बड़ा नियोक्ता बनकर ऐसा करने की कोशिश भी की है। लेकिन उसकी राजकोषीय सीमाओं तक बहुत पहले ही पहुंचा जा चुका है।
इसका सही जवाब इस स्वीकारोक्ति में है कि खपत बढऩे से होने वाली वृद्धि के पूर्ण अभाव या व्यापक विचलन होने पर हम सात फीसदी से कम वृद्धि के एक लंबे या स्थायी दौर में भी पहुंच चुके हैं। अगर तीसरा हिस्सा कृषि से आता है तो इसका बाकी दो क्षेत्रों के लिए क्या मायने है?
निवेश कर अमीर बनने के ये हैं 10 बेहतरीन विकल्प
सचाई यह है कि कम जोखिम के साथ बेहतरीन रिटर्न नहीं कमाया जा सकता. वास्तव में जहां रिटर्न अधिक होगा, वहां जोखिम भी अधिक होगा.
निवेश के किसी विकल्प को चुनते वक्त आपको जोखिम उठाने की अपनी क्षमता के बारे में जानना-समझना जरूरी है. कुछ निवेश ऐसे हैं जिनमें लंबी अवधि में अधिक जोखिम के साथ अधिक रिटर्न का मौका मिलता है.
निवेश के वास्तव में दो तरीके हैं-वित्तीय और गैर वित्तीय निवेश विकल्प.
इसे भी पढ़ें: कैसे ट्रांसफर करें PPF अकाउंट?
वित्तीय प्रोडक्ट में आप शेयर बाजार से संबद्ध विकल्प (शेयर, म्यूचुअल फंड) चुन सकते हैं या फिक्स्ड इनकम (PPF, बैंक FD आदि) के विकल्प चुन सकते हैं. गैर वित्तीय निवेश विकल्प में सोना, रियल एस्टेट आदि आते हैं. ज्यादातर भारतीय निवेश अब तक निवेश के इसी गैर वित्तीय निवेश विकल्प का प्रयोग करते रहे हैं.
हम आपको यहां बता रहे हैं निवेश के शीर्ष 10 विकल्प:
शेयरों में निवेश
हर किसी के लिए शेयरों में सीधे निवेश करना आसान नहीं है. इसमें रिटर्न की कोई गारंटी भी नहीं है. सही शेयरों का चुनाव मुश्किल काम है, इसके साथ ही शेयर की सही समय पर खरीदारी और सटीक वक्त पर निकलना महत्वपूर्ण है. निवेश के अन्य विकल्पों की तुलना में शेयर में लंबी अवधि में रिटर्न देने की क्षमता सबसे अधिक होती है.
इक्विटी म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड की यह कैटेगरी शेयरों में निवेश से ही रिटर्न कमाती है. सेबी के निर्देश के मुताबिक जो म्यूचुअल फंड स्कीम अपने फंड का 65% शेयरों में निवेश करती है, वह इक्विटी म्यूचुअल फंड कहलाती है. इसमें एक फंड मैनेजर होता है जो पर्याप्त रिसर्च के बाद निवेश के लायक शेयर चुनता है और उसमें निवेश करता है.
इक्विटी स्कीम बाजार पूंजीकरण या सेक्टर के हिसाब से अलग हो सकती हैं. इस समय इक्विटी म्यूचुअल फंड का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 15फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.
डेट म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड की यह कैटेगरी उन निवेशकों के लिए सही है जो निवेश से गारंटीड रिटर्न कमाना चाहते हैं. ये म्यूचुअल फंड कॉरपोरेट बांड्स, सरकारी सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल्स, कमर्शियल पेपर आदि में निवेश से रिटर्न कमाती है. इस समय डेट म्यूचुअल फंड का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 6.5, 8 और 7.5 फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.
नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS)
नेशनल पेंशन सिस्टम (nps) का प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में अच्छा रहा है. बहुत कम फीस स्ट्रक्चर भी इसे निवेश का आकर्षक विकल्प बनाता है. बाजार से जुड़े उत्पादों में देश में यह सबसे कम खर्च वाला प्रोडक्ट है. निकासी संबंधी नियमों में बदलाव और अतिरिक्त टैक्स-छूट की वजह से भी यह निवेशक की पसंद में शामिल हो गया है.
एनपीएस बच्चों की शिक्षा, शादी, घर बनाने या किसी मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में आंशिक निकासी की सुविधा देता है. इसमें हालांकि रिटायरमेंट के बाद भी आपको निवेश में बने रहना जरूरी होता है. यह वास्तव में शेयर, FD, कॉरपोरेट बांड, लिक्विड फंड और सरकारी निवेश विकल्प का मिला जुला रूप है.
इस समय NPS का एक, तीन या पांच साल का रिटर्न 9.5, 8.5 और 11 फीसदी सालाना के हिसाब से रहा है.
पीपीएफ
देश में निवेशकों के बीच पीपीएफ सर्वाधिक लोकप्रिय बचत योजनाओं में से एक है. इनकम टैक्स कानून के सेक्शन 80C के तहत किसी एक वित्त वर्ष में आप पीपीएफ में 1.5 लाख रुपये के निवेश पर टैक्स छूट प्राप्त कर सकते हैं.
निवेश के इस विकल्प की सबसे अच्छी बात यह है कि यह आपको EEE (निवेश के वक्त करमुक्त, ब्याज पर करमुक्त, निवेश भुनाने पर करमुक्त) का लाभ देता है.
निवेश के इस विकल्प में सरकारी गारंटी इसकी लोकप्रियता को और बढ़ा देती है.
बैंक FD
बैंक या पोस्ट ऑफिस में कराई जाने वाली टैक्स सेविंग FD से आप निवेश के वक्त सेक्शन 80C के तहत टैक्स बचा सकते हैं. यह निवेश का सुरक्षित और गारंटीड रिटर्न वाला विकल्प है. इस पर मिलने वाले ब्याज पर आपको इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है.
डिपाजिट इंश्योरेंस एवं क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन के हिसाब से आपकी एक लाख रुपये तक की जमा रकम बीमित है.
सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम (SCSS)
पोस्ट ऑफिस की तरफ से बेस्टसेलर के रूप में यह स्कीम रिटायर्ड लोगों के लिए निवेश का पसंदीदा स्रोत है. यह सेवानिवृत लोगों के लिए आय का नियमित स्रोत भी है. इस स्कीम की अवधि पांच साल है जिसे तीन साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है.
इसमें हालांकि प्रति व्यक्ति 15 लाख रुपये की अधिकतम निवेश सीमा है. यह 60 साल से अधिक उम्र के निवेशकों के लिए ही खुली है, हालांकि सेना से रिटायर मेंट लेने वाले लोगों के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है.
विशेषज्ञों का मानना है कि जीवन भर की बचत को पार्क करने और उस पर कमाई के हिसाब से यह स्कीम बेहतरीन है. यह सेवानिवृत लोगों की जरूरत के हिसाब से बनाया गया है.
रिजर्व बैंक के टैक्सेबल बांड्स
पहले इस स्कीम में आठ फीसदी सालाना का ब्याज मिलता था जिसे सरकार ने बदल कर अब 7.75 फीसदी ब्याज वाला विकल्प बना दिया है. इस बांड में पांच साल के लिए निवेश किया जा सकता है.
रियल एस्टेट
खुद के रहने के हिसाब से घर खरीदना अब निवेश के लिहाज से भी आकर्षक विकल्प बनकर उभरा है. अगर आपको रहने की जरूरत नहीं है तो आप निवेश के हिसाब से भी दूसरा घर खरीद सकते हैं. निवेश के इस विकल्प में आपको सिर्फ प्रॉपर्टी की लोकेशन और वहां मौजूद सुविधाओं का ध्यान रखने की जरूरत है.
इसमें निवेश से आप पूंजी में इजाफा और किराये से आमदनी, दो तरीके से रिटर्न कमा सकते हैं.
सोना
निवेश का यह विकल्प सदियों से भारतीयों की पसंद में शामिल है, पहनने के लिए खरीदी जाने वाली ज्वेलरी से लेकर निवेश के रूप में खरीदे गए सिक्के और बार तक, सोना बिना किसी संदेह के भारतीयों की पसंद में सबसे ऊपर है. अब आप पेपर गोल्ड के रूप में भी सोने में निवेश कर सकते हैं.
गोल्ड ETF में निवेश करना और भुनाना दोनों ही शेयर बाजार के जरिये होता है.
आप क्या करें
निवेश के कुछ विकल्प शेयर बाजार से संबद्ध हैं तो कुछ निश्चित ब्याज वाले हैं. आप जोखिम लेने की अपनी क्षमता के हिसाब से ही रिटर्न की उम्मीद रखें.
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25 हजार रुपए की मामूली सैलरी कमाने वाले भी बना सकते हैं 50 लाख, बस बचत के लिए अपनाना होगा ये फॉर्मूला
आपकी बचत और उस बचत का सही निवेश ही आपके जीवन को बेहतर कर सकता है. इसलिए कहीं भी निवेश करने से पहले बचत करने का तरीका सीखें, ताकि आप अपने भविष्य को बेहतर बना सकें.
25 हजार रुपए की मामूली सैलरी कमाने वाले भी बना सकते हैं 50 लाख, बस बचत के लिए अपनाना होगा ये फॉर्मूला (Zee Biz)
अगर सही समय पर सही जगह पर निवेश शुरू कर दिया जाए, तो लखपति या करोड़पति बनना बड़ी बात नहीं है. लेकिन निवेश से पहले जरूरी है कि आप बचत करना सीखें. ऐसे तमाम लोग हैं जिनकी सैलरी काफी कम होती है और उन्हें पूरे परिवार की जरूरतों को उस छोटी सी सैलरी से पूरा करना होता है. ऐसे लोगों का तर्क होता है कि आखिर इतनी छोटी सी सैलरी में बचत कैसे करें?
इस मामले में फाइनेंशियल एक्सपर्ट शिखा चतुर्वेदी कहती हैं कि एक कहावत है कि उतने ही पैर पसारें, जितनी उसकी चादर हो. इसका मतलब है आपको अपने खर्चों को आमदनी देखते हुए भी बढ़ाना या घटाना चाहिए. अगर आपकी सैलरी कम है तो आपको अपने खर्चों को भी उसी हिसाब से सीमित रखना चाहिए, लेकिन बचत हर हाल में करनी चाहिए क्योंकि आपकी बचत और उस बचत का सही निवेश ही आपके जीवन को बेहतर करेगा. अब सवाल उठता है कि छोटी सैलरी वाले बचत कैसे करें और निवेश कहां पर करें? जिससे कि बेहतर रिटर्न पा सकें. आइए आपको बताते हैं इस बारे में.
बचत के लिए आजमाएं ये फॉर्मूला
इस मामले में शिखा कहती हैं कि आप चाहे ज्यादा कमाते हों या कम, आपको बचत हर हाल में करनी चाहिए. इस बचत के लिए 50-30-20 का नियम अपनाना चाहिए. आप जितने रुपए भी कमाते हैं, उसमें से करीब 50 फीसदी हिस्सा तो घर-परिवार के जरूरी खर्चों में ही खत्म हो जाता है. इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते. लेकिन बकाया 50 प्रतिशत को आपको मैनेज करना होगा. इसमें से 30% आप अपने शौक को पूरा करने में कर सकते हैं, जैसे आप परिवार के साथ मूवी देखना चाहते हैं, घूमना चाहते हैं, शॉपिंग करना चाहते हैं या कोई भी काम जो बहुत जरूरी नहीं, बस आप शौक के लिए करना चाहते हैं और 20% हिस्सा, इसे हर हाल में बचाएं.
उदाहरण से समझें
मान लीजिए कि आपकी मासिक सैलरी 25 हजार रुपए है. इसमें आपका 50% यानी 12,500 रुपए तो सीधेतौर पर घरेलू जरूरतों को पूरा करने में चला जाता है. 30% यानी 7500 रुपए आप अपने किसी शौक या घर के कुछ अन्य बचे हुए कामों को पूरा करने में खर्च कर सकते हैं. यानी कुल 20 हजार रुपए आप घर की जरूरतों को पूरा करने में ले सकते है और अपने हिसाब से खर्च कर सकते हैं. लेकिन 25 हजार का 20% हिस्सा यानी 5000 रुपए आपको हर हाल में बचाने हैं. इनका इस्तेमाल आप निवेश में करेंगे.
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5000 के निवेश से भविष्य में जोड़ लेंगे मोटा पैसा
शिखा कहती हैं कि अगर आप हर महीने ये 5000 रुपए बचा लेते हैं तो भी आप कुछ सालों में मोटा पैसा जोड़ सकते हैं. लेकिन इसके लिए आपको SIP में निवेश करना होगा. आज के समय में SIP को निवेश के लिए सबसे बेहतर स्कीम्स में माना जाता है क्योंकि इसमें औसतन 12 फीसदी का रिटर्न मिल जाता है और कंपाउंडिंग का फायदा मिलता है. कई बार तो 14 से 15 फीसदी तक भी रिटर्न मिल जाता है. ऐसे में आप 5 हजार के मासिक निवेश से 50 लाख रुपए तक भी बना सकते हैं.
5000 से ऐसे बनेगा 50 लाख
SIP में आप जितने लंबे समय के लिए पैसा लगाएंगे, उतना ज्यादा फायदा आपको मिल सकता है. SIP कैलकुलेटर के मुताबिक अगर आप 5,000 रुपए मासिक निवेश 10 सालों तक करते हैं और मिनिमम 12 फीसदी सालाना रिटर्न मिलता है, तो आप 11.6 लाख रुपए का अनुमानित फंड बना सकते हैं. इसमें निवेश की कुल रकम 6 लाख रुपये और वेल्थ गेन 5.6 लाख रुपए का होगा. 15 साल के लिए निवेश करते हैं और 12 फीसदी रिटर्न पाते हैं तो 25.2 लाख रुपए का अनुमानित फंड बना लेंगे. इसमें निवेश की कुल रकम 9 लाख रुपए और वेल्थ गेन 16.2 लाख रुपए का होगा. वहीं अगर 20 सालों के लिए 5000 रुपए का मासिक निवेश करते हैं, तो 12 फीसदी सालाना रिटर्न के हिसाब से आप 50 लाख रुपए का अनुमानित फंड बना लेंगे. इसमें निवेश की कुल बचत एवं निवेश से जुड़े उत्पाद रकम 12 लाख रुपए और वेल्थ गेन 38 लाख रुपए का होगा.
महिलाओं के लिए टैक्स बचाने के कई तरीके, जानें यहां
कामकाजी महिलाएं इन तरीकों से टैक्स कटौती से अपनी सैलरी बचा सकती हैं. जानिए एक्सपर्ट्स से.
प्रज्ञा बाजपेयी
- नई दिल्ली,
- 07 मार्च 2019,
- (अपडेटेड 18 मार्च 2019, 5:37 PM IST)
वर्तमान समय में मध्यम वर्ग की कामकाजी महिलाएं अपनी बचत एवं निवेश से जुड़े उत्पाद तनख्वाह में से टैक्स की कटौती को लेकर चिंतित रहती हैं लेकिन अब उन्हें इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि कुछ तरीके ऐसे हैं, जिनके जरिए वे अपना टैक्स बचा सकती हैं. पॉलिसी बाजार डॉट कॉम की लाइफ इंश्योरेंस की हेड (महिला) संतोष अग्रवाल बता रही हैं टिप्स.
बीमा के तहत टैक्स कटौती का विकल्प: हालांकि बीमा एक सुरक्षा साधन है लेकिन टैक्स बचाने के लिए यह कभी भी प्राथमिक साधन नहीं रहा है. लेकिन फिर भी यह जीवन बीमा के अंतर्गत धारा 80सी एवं 10 (10डी) के तहत और स्वास्थ्य बीमा में 80डी के तहत टैक्स छूट का लाभ प्रदान करता है.
यूलिप: नई पीढ़ी के यूलिप के प्रचलन में आने और युवाओं के बीच सबसे पसंदीदा निवेश विकल्प होने के साथ ही यह धारा 80सी के तहत टैक्स छूट भी प्रदान करते हैं. लगभग बिना किसी प्रीमियम आवंटन शुल्क और पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन शुल्क के साथए यूलिप्स एक कम लागत वाला निवेश उत्पाद है. आईआरडीएआई ने फंड मैनेजमेंट शुल्क की उच्चतम सीमा 1.35 फीसदी तय की है, ऐसे में इसके सभी प्रोडक्ट में यह दर 1 से 1.35 प्रतिशत के बीच है.
इसमें आपके निवेश का एक भाग जीवन बीमा के लिए जाता है, वहीं अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए दूसरा भाग मार्केट में निवेश कर दिया जाता है. इसकी कई अन्य विशेषताएं भी हैं जैसे विभिन्न फंड्स के बीच नि:शुल्क अदला-बदली, मृत्यु पर प्रीमियम से मुक्ति, आय लाभ और लॉयल्टी एडिशन इत्यादि.
पीपीएफ: पब्लिक प्रोविडेंट फंड एक सबसे लोकप्रिय और विश्वसनीय लंबी अवधि निवेश और टैक्स बचत योजनाओं में से एक है. पीपीएफ पर ब्याज की दर सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है और इसकी लॉक-इन अवधि 15 वर्ष है, इसलिए यह निवेशक को कर-मुक्त लाभ प्रदान करता है.
अन्य विकल्पों में बाजार से जुड़े उत्पादों में निवेश शामिल हैं, ये अपने अलग जोखिम के साथ आते हैं लेकिन अच्छे रिटर्न भी देते हैं.
बीमा का चयन करना : नौकरीपेशा महिलाओं के लिए टैक्स बचत के विकल्पों की योजना बनाते समय, 80डी एक ऐसा सबसे महत्वपूर्ण सेक्शन है जिस पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए. यह प्रति वर्ष 25,000 रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम का भुगतान करने पर कर योग्य आय में कटौती की सुविधा प्रदान करता है. स्वास्थ्य बीमा प्रत्येक व्यक्ति और खासतौर पर वेतनभोगी महिलाओं के लिए एक बुनियादी जरूरत है क्योंकि स्वास्थ्य बीमा के लिए प्रीमियम का भुगतान करने से न केवल आपको बीमा कवर मिलता है, बल्कि कई सारे टैक्स लाभ भी मिलते हैं.
धारा 80सी के तहत कटौती : पीपीएफए एनपीएसए यूलिप कुछ ऐसे निवेश विकल्प जिन्हें आप अपना पैसा लगाने के लिए चुन सकते हैं. ये हर साल आपका 1,50,000 रुपए तक टैक्स बचा सकते हैं. वे महिलाएं, जो अपने सेवानिवृत्ति के दिनों के लिए बचत करना चाहती हैं, उन्हें अपने निवेश की ग्रोथ पर सक्रिय रूप से ध्यान देना चाहिए.
एनपीएस में निवेश करने से धारा 80सीसीडी (1बी) के तहत 50,000 रुपये का अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है.
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